बसंत पंचमी भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोग जैसे भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, जावा और बाली जो इंडोनेशिया में हैं, वहां पर हिंदू तथा जैन समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक त्यौहार है जिसे बसंत के आगमन का प्रतीक के रूप में इन देशों में मनाया जाता है। वसंत पंचमी मात्र बसंत के आगमन की तैयारी का प्रतीक ही नहीं है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी होलीका और होली की तैयारियों की भी प्रतीक है जोकि वसंत पंचमी के 40 दिनों के अवधि में मनाया जाता है।
सरस्वती पूजा और बसंत पंचमी कब, क्यों और कहाँ मनाई जाती है?
वैसे तो बसंत पंचमी का ग्रेगोरियन कैलेंडर में कोई नियत तिथि निर्धारित नहीं है किंतु यह जनवरी के आखिरी सप्ताह या फरवरी माह में मनाया जाता है। यदि हम हिंदू कैलेंडर की माने तो वसंत पंचमी प्रत्येक वर्ष माघ महीने के उज्जवल आधे के पांचवे दिन मनाया जाता है जो आमतौर पर जनवरी या फरवरी में पड़ता है। हिंदू सभ्यता तथा अन्य सभ्यता के अनुसार बसंत को सभी मौसमों का राजा के रूप में जाना जाता है जिसका भारत में एक खास महत्व है।
ऐसा नहीं है कि वसंत पंचमी मात्र हिंदुओं का त्यौहार है और यदि हम भारत के दक्षिणी राज्यों की बात करें तो वहां पर सिख समुदाय द्वारा बसंत पंचमी को श्री पंचमी के रूप में मनाया जाता है। यदि हम बाली दीप और इंडोनेशिया के रहने वाले हिंदू समुदाय के द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व की बात करें तो वहां पर इसको हरि राय सरस्वती के रूप में मनाया जाता है जिसका हिंदी में अर्थ है सरस्वती का महान दिन।
हिंदू समाज में सरस्वती पूजा का अत्यंत महत्व होता है जहां पर बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है जोकि ज्ञान, भाषा, संगीत और सभी कलाओं की देवी के रूप में हिंदू धर्म में विख्यात हैं।
बसंत पंचमी मात्र एक धार्मिक त्यौहार नहीं है क्योंकि यह भारत में रहने वाले किसानों तथा कृषि वर्ग द्वारा मनाए जाने वाला एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में भी देखा जाता है। इस मौसम में सरसों के पीले फूल खिलते हैं जो कि हिंदू देवी सरस्वती के पसंदीदा रंगों के साथ जोड़ता है इस दिन महिलाएं तथा पुरुष पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं तथा पीले रंग की मिठाइयां का लेन-देन भी करते हैं।
नेपाल, बिहार और भारत के पूर्व राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल सहित उत्तर पूर्वी राज्यों त्रिपुरा और असम के लोग इस दिन मंदिर में जाते हैं तथा देवी सरस्वती का पूजा करते हैं। इस दिन भारत के अनेक विद्यालय अपने परिसर में मां देवी सरस्वती की पूजा का विशेष व्यवस्था करते हैं।
बसंत पंचमी के दिन भारत के कई राज्यों में पीले वस्त्र धारण करना, पीले मिठाई का सेवन करना तथा पतंग उड़ाने का रिवाज है।
सरस्वती पूजा का महत्व और सरस्वती माँ की उत्पत्ति
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने मनुष्य योनि की रचना की परंतु वह अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे। तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई। जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था तथा अन्य दोनों हाथों में क्रमशः पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाथ किया तो संसार की समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई तब ब्रह्मा जी ने इस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती देवी को बागेश्वरी, भगवती, शारदा देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं। बसंत पंचमी के दिन को माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। पुराणों के अनुसार, श्री कृष्ण जी ने सरस्वती जी से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी इस कारण बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है।