चंदेरी छोटी सी दुनिया का बड़ा सा आकाश सिल्क की नगरी एक ऐसी जगह जो प्रसिद्ध है अपनी एतीहासिक इमारतो और खूबसूरत रेशमी साडियों के लिए. मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में एक छोटा सा क़स्बा जो अपनी शांति और ऐतिहासिक इमारतो की वजह से देश के मानचित्र में एक ख़ास जगह रखता है चंदेरी को एक ख़ास पहचान दिलवाती है वहा की कुछ ख़ास इमारते जैसे बादल महल , कौशक महल, किलाकोठी, सिंगपुर महल, रामनगर महल, और कई प्राचीन स्मारक
जो अपने प्राचीन इतिहास के कारण बरबस ही लोगो का ध्यान आकर्षित कर लेते है कई देशी विदेशी पर्यटक हर साल यहाँ इस प्राचीन विरासत को देखने यहाँ आते है
एक और चीज़ है जो इस जगह को ख़ास बनाती है वो है यहाँ बनने वाली रेशमी साडियां जो अपनी खूबसूरत कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है हर भारतीय नारी की पहली पसंद है ये
अपनी खुबसूरत डिजाईन और नाज़ुक बुनाई की वजह से बरबस ही इनकी खुबसूरत कारीगरी मन मोह लेती है और आपके मूंह से बस यही निकलता है मुझे भी एक चाहिए…..
पर कुछ वक़्त पहले कम बुनाई और अधिक खर्च की वजह से ये पारंपरिक पेशा अपनी पहचान खोने लगा था पर फिर हथकरघा उद्योग को एक नई पहचान देने की कोशिश शुरू हुई और तभी शुरुआत हुई चंदेरी साडी के एक नए अध्याय की. जिस प्रकार पुरातत्व विभाग ने शहर की कई पुरानी इमारतो को पुनः रंग रूप देकर उनको नया जन्म दिया और उन्हें देश के मानचित्र में सर उठाकर खड़े होने लायक बनाया ठीक उसी तरह चंदेरी साडी को भी नए रंग रूप की ज़रूरत थी और ये काम किया एक संस्था ने जिसने वहाँ के लोगो को कंप्यूटर से परिचित करवाया और बताया की किस तरह कंप्यूटर के इस्तेमाल से नई डिजाईन बन सकती है साथ ही किस तरह बुनकर खुद अपनी साडिया ऑनलाइन बेच सकते है और अधिक से अधिक मुनाफा कमा सकते है
आज चंदेरी साडी का लगभग हर बुनकर फेसबुक और वेबसाइट के माध्यम से दुनिया के कोने कोने के लोगो से जुड़ चूका है और अपने हुनर की सही कीमत प्राप्त कर पा रहा है.
आज मैं चन्देरियां में अपने अनुभव को आप सब के साथ साझा कर रही हूँ ये मेने इस जगह २ साल काम किया और ये समय मेरी ज़िन्दगी का सबसे अच्छे अनुभब में से एक है बहुत कुछसीखा लोगो की सही पहचान करना सही वक़्त सही फैसला लेना परेशानियों में भी हिम्मत से काम लेना ज़िन्दगी का सही मतलसब यही आकर समझ आया
जब मैं पहली बार यहाँ आई थी तो मुझे ये भी नही पता था की ये क्या जगह है और यहाँ क्या होता है अपनी एक दोस्त के साथ बस वहा देखने गई थी वहा मेरी मुलाक़ात प्रोजेक्ट हेडशाहिद अहमद से हुई उन्होंने ही मुझे उस प्रोजेक्ट की सही जानकारी दी तब मुझे भी यह एहसास हुआ की ये केवल एक कदम नहीं बल्कि लोगो को नए रस्ते की और ले जाने की पहल है एक ऐसी पहल जोआगे चलके इस जगह की किस्मत बदल देगा
हमने जब काम शुरुआत की तब लोग इस जगह को अजूबे की तरह देखते थे। बच्चे सीखने आते पर वो इस काम संजीदगी नहीं लेते। फिर जैसे की हम भारतीयों का स्वाभाव है की हम परिवर्तन बर्दाश्त नहीं कर पाते यहाँ भी हमे विरोध का सामना करना पड़ा लोगो को लगा की कंप्यूटर के उपयोग से हाथ से डिजाईन बनाने की सदियो पुरानी परंपरा खतरे में पड़ जाएगी।
मुझे याद है की मेरी क्लास में १० कंप्यूटर थे और एक बैच में २०-२५ छात्र होते थे सुबह ९ बजे शाम ५ बजे तक लगातार। हर उम्र के ५ साल से लेकर ५० साल तक के और अनपढ़ से लेकर ग्रेजुएट
और सभी शिकायत करते की उनको पूरा पूरा वक़्त नही मिल रहा। शायद ये हम सबका स्वभाव ही है की हम सदा ज़्यादा की चाह रखते है। एक बार छात्रों ने विरोध प्रदर्शन भी किया कोई बच्चा क्लास में नहीं आया और कुछ नेता बने छात्रों ने धमकी भी दे डाली की वे सिंधिया जी से शिकायत कर देंगे. हर सप्ताह कोई न कोई जांच दल आ जाता था। ये देखने की कही सरकारी पैसे का दुरूपयोग नहीं हो रहा।
ऊपर से बिजली की समस्या दिन में कई कई घंटे बिजली गुल रहती। इन्वर्टर भी काम नहीं कर पाते। मई जून की वो जानलेवा गर्मी। पर हमारे प्रोजेक्ट डायरेक्टर शाहिद सर हर बार समस्या का समाधान ढून्ढ लेते और हम लोगो की हिम्मत भी बढ़ाते रहते। साथ ही सौम्य सर जो इतनी विषम परिस्तिथियों में भी दिल्ली को छोड़ यहाँ रहकर हमारा साथ देते रहे।
फिर कुछ समय बाद हमारे यहाँ चंदेरी साडी की डिजाईन के लिए नया सॉफ्टवेयर आया जिसकी मदद से
नई नई डिजाईन बनाना आसान हो गया। कुछ चयनित व्यक्तियों को उसकी ट्रेनिंग के लिए मुम्बई भेजा गया फिर ऑनलाइन ट्रेनिंग की मदद से उनको उस काम में महारत हासिल। और जो डिजाईन बनने में पहले हफ़्तों लग जाते थे वो अब ही पलो में बन जाती। साथ ही पुराने डिजाईन डिजिटाइज़ भी किया जा सकता था।
पहले लोगो को समझ नहीं आया फिर एक ऐसी विवादित डिजाईन आई जिसने अचानक ही चंदेरी साडी को चरचा में ला दिया। मौक़ा था कामनवेल्थ गेम्स का और उसके लोगो वाला स्टोल जो सभी खिलाड़ियों को दिए जाने वाले थे उनकी डिजाइनिंग का।
मैंने इस सन्दर्भ में एक शब्द विवादित उपयोग किया है क्योंकि उस दुपट्टे का लोगो डिजाईन करने का प्रोजेक्ट हमारी संस्था को नहीं बल्कि हस्तशिल्प विकासनिगम को मिला था। पर वहा के डिज़ाइनर ने हमारी संस्था के एक ट्रेनी फुरकान मदद ले कर डिजाईन हमारे अधिकृत सॉफ्टवेयर से बनवा लिया।
पर मुझे ये बात ठीक नहीं लगी और मेने सर को बात बताई बस फिर क्या था विवाद हुआ की बस
और आखिर फुरकान को उसकी मेहनत फल मिला और क्रेडिट भी। और आज भी वो संस्था का स्टार डिज़ाइनर है। इसआय के साथ ही एक नए काम की भी शुरुआत की गई जिसमे पुरानी और हस्त निर्मित और लगभग लुप्त प्राय डीजाईन को डिजिटाइज़ किया गया ताकि पुरानी विरासत को सदेव के लिए संभाला जा सके.
एक बार किसी ने कहा था की हम लोग बैल गाडी में हेलीकाप्टर का इंजन लगा कर उसे उड़ाने की कोशिश कर रहे है पर आज जब भी टीवी पर इंटेल के विज्ञापन में चंदेरी साड़ी और अपने ऑफिस को देखती हु तो लगता है की अभी तो ये पहली उड़ान है अभी आसमा और बाकी है…