धर्म और कर्म में क्या अंतर हैं क्या तात्पर्य है धर्म और कर्म से हर व्यक्ति अपने जीवन में इन दो पड़ाव से गुजरता है हम धर्म और कर्म को किस तरह परिभाषित करते हैं? धर्म एक जरिया है जो सभी लोगों को एकजुट करता हैं, क्या सिर्फ भगवान की भक्ति करना ही धर्म है? नहीं धर्म सिर्फ भगवान की पूजा और भक्ति ही नहीं बल्कि असहारा की मदद करना भी धर्म है हर व्यक्ति भगवान के मंदिर में जाता है वहां सर झुकाता है, भगवान को जल चढ़ाता हैं और अनेक सामग्री जो भगवान को चढ़ती हैं वह सभी। परन्तु धर्म यह भी है कि जो जल जो दूध व्यक्ति भगवान को चढ़ाता है वह गरीब को दे ताकि उसका पेट भरे वह किसी भी तरह से भूखा न रहे। कहते हैं बुरे कार्य सभी देख लेते हैं, परन्तु अच्छे कार्य की गिनती नहीं होती हमारे हर तरह के काम कोई देखे या न देखे परन्तु भगवान जरूर देखता है, कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आप किसी को सुख दे रहे हो किसी का पेट भर रहे हो वह भी धर्म ही हैं। धर्म का पालन तो भगवान ने भी किया फिर हम तो मानव है,व्यक्ति को धर्म का पालन जरूर करना चाहिए। हमारे देश में अनेक धर्म के लोग रहते हैं जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, और इसाइ। इंसान का सबसे बड़ा धर्म है इंसानियत, अर्थात हर व्यक्ति को इंसानियत रखना जरूरी है धर्म का अर्थ है किसी का भी बुरा न करना किसी के लिए मन में हिन भावना पैदा न करना। धर्म हमेशा ही व्यक्ति की सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है हमारे शास्त्रों में भी धर्म को प्रथम स्थान दिया गया है। यदि हर व्यक्ति धर्म को समझे तो उसका कभी बुरा नहीं होगा क्योंकि धर्म कभी गलत नहीं सिखाता। धर्म ही हमें जीना सिखाता है व्यक्ति को अच्छाई और बुराई में अंतर करना सिखाता हैं।
धर्म:
हर व्यक्ति भगवान की पूजा करता हैं आरती करता हैं परंतु सच्चा धर्म आत्मा से जुड़ा होता है भक्ति करना तो आसान है परन्तु धर्म को आत्मा से जोड़ना जरूरी है जब व्यक्ति अपनी अंतरात्मा से धर्म करता हैं तो उसकी सकारात्मकता और एकाग्रता भी बढ़ती है और वह मानसिक रूप से भी स्वयं को स्वस्थ महसूस करता हैं। जो व्यवहार व्यक्ति स्वयं के लिए नहीं चाहता वह दूसरों के साथ भी नहीं करना चाहिए। हमेशा दूसरों की सहायता करना मुसीबत में काम आना धर्म है। सदैव ही सत्य बोलना धर्म है। किसी भी व्यक्ति को अपने मन में क्रोध नहीं रखना चाहिए धर्म ही व्यक्ति के साथ जाता है अर्थात व्यक्ति जीवन में जितना धर्म करे वह उसके लिए लाभदायक होता है हमारे देश में अनेक धर्म के लोग रहते हैं सभी अपने धर्म का पालन भी करते हैं। धर्म व्यक्ति की आत्मा को शुद्ध करता हैं कभी-कभी व्यक्ति अच्छे कार्य करता हैं पशुओं को दान करता हैं किसी की मदद करता हैं वह धर्म ही है। धर्म का अर्थ हर व्यक्ति को समझना जरूरी है अपने माता-पिता की सेवा करना बुजुर्गों की सेवा करना धर्म है। जब व्यक्ति बुजुर्गों की मदद करता हैं उनकी सेवा करता हैं तो उनकी दुआ उस व्यक्ति को उसके बुरे कार्यो से बचाती है अर्थात यह कि जब व्यक्ति अच्छे कर्म करेगा और धर्म का पालन करेगा तो वह कभी परेशान नहीं होगा किसी व्यक्ति को यह नहीं पता कि वह कितना धर्म कर रहा है और उसने कितना धर्म किया है जब कोई व्यक्ति किसी बेसहारा की मदद करता हैं तो वह धर्म भी उसे कहीं न कहीं उसे बुरे समय से बचाता है हर व्यक्ति को धर्म की परिभाषा समझना जरूरी है। धर्म क्या है और धर्म का क्या महत्व है यह हमारे शास्त्रों में लिखा गया है और सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह कि जिस व्यक्ति ने गीताजी को पढ़ा है या पढ़ता है उसे धर्म पूरी तरह से समझ में आता है इसलिए कहा जाता है कि धर्म की किताबे व्यक्ति को पढ़ना चाहिए जब किसी व्यक्ति का अंतिम समय निकट आता है या उसके परिवार को उसके जाने का आभास होता है तो वह उस व्यक्ति के लिए धर्म की किताब पढ़ते हैं क्योंकि जीवन के मोह माया रिश्ते सभी छूट जाते हैं व्यक्ति सिर्फ अपने कर्मो को साथ लेकर जाता है। व्यक्ति अपने जीवन में हर पड़ाव पर धर्म का पालन करता हैं परिवार में मांगलिक कार्य भी होता है तो पहले हम भगवान की ही आराधना करते हैं फिर अपने मांगलिक कार्य को आगे बढ़ाते हैं।
कर्म:
व्यक्ति अपने जीवन में अनेक कर्म करता हैं या कह सकते हैं व्यक्ति हर दिन कर्म करता हैं जब वह सुबह उठता है तो उसके कर्म उसके पूरे दिन की दिनचर्या से जुड़ जाते हैं धर्म ही कर्म है यह बात सत्य है क्योंकि धर्म अर्थात कुछ अच्छा करना धर्म और कर्म दोनों ही शब्द एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं यदि व्यक्ति अच्छे कार्य करता हैं तो वह उसके अच्छे कर्म है और धर्म है परन्तु जब वह बुरे कार्य करता हैं या किसी का बुरा करता हैं वह उसके बुरे कर्म है। कोई भी व्यक्ति अपने कर्मो से नहीं बच सकता आज के समय में अधिकांश व्यक्ति इन बातो को नहीं मानते हैं परन्तु यह सत्य है कि कर्म प्रधान है व्यक्ति के कार्य और कर्म ही उसके भविष्य को तय कर देते हैं अक्सर बुजुर्गों के द्वारा सिख दी जाती है अच्छे कर्म करने की क्योंकि वे आपके जीवन में सहायक सिद्ध होते हैं और वे अपने जीवन में हर पड़ाव और हर अनुभव से गुजरते हैं। किसी भी व्यक्ति के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह भगवान के सामने बैठकर भक्ति आराधना करें यदि व्यक्ति का मन साफ है उसके मन में किसी के लिए छल नहीं है और वह किसी भी बुरे कर्मों को अंजाम नहीं दे रहा है तो वह भी धर्म ही है। अगर हम यह मानते हैं कि जो व्यक्ति भगवान की भक्ति करता हैं उसके साथ कभी बुरा नहीं होगा या उसके गलत कार्य से वह बच जायेगा तो वह गलत है क्योंकि भगवान की भक्ति का अर्थ है आत्मा से भक्ति का जुड़ना और जो व्यक्ति सही रूप में भक्ती से जुड़ जाता है वह कभी गलत कार्य नहीं करता क्योंकि जब व्यक्ति अपने मन और आत्मा से भक्ति करता हैं तो उसके अंदर एक सकारात्मकता पैदा होती है जो उसे गलत कार्यों को करने से रोकती है। कर्म शब्द का उपयोग अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरीके से किया जाता है वह सारे कार्य जो हम अपने शरीर मन और वाणी द्वारा करते हैं वह कर्म है। व्यक्ति अपने जीवन में अनेक कर्म करता हैं और रहे कर्मो के अनुसार ही उसे फल मिलता है उदाहरण के तौर पर बात करे तो जब कोई विद्यार्थी परिक्षा पास होने के लिए प्रार्थना करता हैं तो उसे समझना जरूरी है कि कर्म करे और इतनी मेहनत करे कि उसे भगवान के दर पर सलमान झुकाने की जरूरत न पड़े।
भगवान भी कर्म के अनुसार ही फल देता है यदि व्यक्ति कर्म करेगा ही नहीं तो उसे फल प्राप्ति की उम्मीद नहीं रखना चाहिए स्वभाविक है जैसे कोई व्यक्ति नौकरी करता हैं या व्यापार कर रहा है तो वह अपने कार्यो को पूरा करता हैं उसमें मेहनत करता हैं तभी पैसा आता है तो कहने का तात्पर्य यह है कि कर्म करना अनिवार्य है अगर व्यक्ति बिना मेहनत के नौकरी की आस करे तो या भगवान के सामने सर झुकाये कि उसे नौकरी मिल जाये तो वह सम्भव नहीं है किसी भी चीज को पाने की शुरुआत स्वयं से होती है स्वयं की जागरूकता और स्वयं के कर्म ही प्रथम होते हैं। एक मनुष्य के जीवन में सुख दुःख शुभ अशुभ का फल कर्मो के अनुसार ही मिलता है कर्म का फल हर व्यक्ति को भोगना पड़ता है चाहे वह कर्म अच्छे हो या बुरे हो। अक्सर ऐसा होता है जब कोई विद्यार्थी परिक्षा देने जाता है तो वह किसी पेन को खास समझता है या कोई व्यक्ति नौकरी के लिए जाता है तो वह किसी रंग को खास समझता है कि इसकी वजह से शुभ ही होगा कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति कपड़ों और वस्तुओं को अपनी सफलता से जोड़ता है परन्तु यह अंधविश्वास है, एक पेन किसी विद्यार्थी को प्रथम नहीं ला सकता और कपड़ों का रंग किसी व्यक्ति की नौकरी नहीं लगवा सकता, व्यक्ति को अंधविश्वास जैसी चीजों में भरोसा नहीं करना चाहिए एक विद्यार्थी यदि मेहनत करेगा तो उसका लकी पेन का अंधविश्वास खत्म हो जायेगा और यदि कोई व्यक्ति कपड़ों का अंधविश्वास छोड़ दें और नौकरी पाने के लिए लिए मेहनत करे तो अवश्य ही उसे नौकरी मिलेगी कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति वस्तुओं को सफलता से जोड़ता है या शुभ अशुभ जोड़ता है तो वह अंधविश्वास हैं आज अनेक व्यक्ति ऐसे हैं जो दुख भोगते है वह उनके पिछले कर्म ही है जिनका फल उन्हें मिलता है इसलिए हर व्यक्ति के लिए जरूरी है अच्छे कर्म करना यदि कोई व्यक्ति एक और धर्म कर रहा है पशुओं की सेवा कर रहा है और दूसरी ओर बुरे कर्म कर रहा है या किसी का मन दुखा रहा है तो उसके धर्म करने का भी कोई महत्व नहीं रहता इसलिए हर व्यक्ति जरूरी है धर्म और कर्म को समझना।
व्यक्ति धर्म के लिए अनेक प्रकार के कार्य करता हैं सुख और समृद्धि पाने के लिए अपने घर में ही पूजा पाठ करता हैं या कोई यज्ञ करता हैं अपने घर में शांति के लिए यह सभी चीजें धर्म से जुड़ी होती है जब व्यक्ति बुरे कार्य करता हैं तो उसे पता होता है कि वह गलत कर रहा है परन्तु जो नियति में लिखा है उसका होना तय है हर व्यक्ति को धर्म के मार्ग पर चलना जरूरी है। जब व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलता है या धर्म करता हैं तो उसका दिमाग स्थिर रहता है वह कभी गलत मार्ग पर नहीं चलता और धर्म कभी गलत काम मार्ग नहीं दिखाता हमारे जीवन में कुछ भी होता है वह हमारे अच्छे और बुरे कर्मों का परिणाम होता है। पाप करने वाला अपने कर्मो का फल कभी न कभी तो भुगतता ही हैं व्यक्ति को यह नहीं पता कि पाप होता क्या है कई व्यक्ति ऐसे हैं जो चोरी करते हैं दूसरो से बुरा व्यवहार करते हैं या महिलाओं के साथ दुष्कर्म करते हैं वह सभी पाप है यहां तक कि पेड़ों को काटना भी पाप है पेड़ प्रकृति की देन है और जब व्यक्ति प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता हैं तो उसे वह पाप भोगना ही पड़ता है उसे बाढ़, भूकम्प, और आपदा का सामना करना पड़ता है। झूठ बोलना किसी के लिए बुरा सोचना भी पाप है मतभेद हर व्यक्ति में होते हैं परन्तु क्रोध से किसी का भला नहीं होता है हमेशा विक्षम परिस्थितियों में संयम रखना जरूरी है।