आज हमारे भारत में अधिकांश ऐसे गरीब वर्ग के लोग हैं जो मजदूरी कर अपना घर चलाते हैं ऐसे में वे अपने बच्चों को भी मजदूरी का हिस्सा बनाते हैं क्या बच्चों से मजदूरी करवाना सही है? 14 साल और उससे भी कम उम्र के बच्चे मजदूरी करते हैं क्यूँ? जो उम्र उनके खेलने की है, पढ़ने की है उस उम्र में उन पर जिम्मेदारियों का बोझ देना सही है? गरीब परिवार और मजदूर दिन और रात मजदूरी करते हैं अर्थात उनके बच्चे वहीं माहौल देखते हैं जो परिवार में होता है। हो सकता है कई ऐसे माता – पिता होगें जो अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते होगें परन्तु गरीबी की वजह से वह कोई कदम नहीं उठाते परन्तु इसका अर्थ यह तो नहीं कि यदि आप उनका भविष्य नहीं बना पाए रहे तो उनसे मजदूरी करवाये। बात मजदूरी की हो या बाल श्रम की इस छोटी सी उम्र में ही माता-पिता बच्चों को सड़कों पर मांगने के लिए भेज देते हैं या कम उम्र में ही लोगों के घरों में काम करवाने को भेज देते हैं आज अधिकांश बच्चे देश में ऐसे हैं जो रोड़ पर घूम रहे हैं या लोगों के घरों में काम कर रहे हैं। भारत में गरीब वर्ग में यहीं 3 सबसे गंभीर विषय हैं मजदूरी, लोगों के घरों में काम, और सड़कों पर मांगना जो गरीब वर्ग के बच्चे करते हैं।
उन मासूमों की कोई गलती नहीं है उन्होंने तो जीवन वहीं देखा है जो उन्हें दिखाया गया है, समझना उन माता – पिता को है कि यदि उन्होंने अपने जीवन में मजदूरी की है तो वह अपने बच्चों को बेहतर भविष्य दे उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दे ताकि वे बच्चे बड़े होकर अपने माता-पिता का सहारा बने। ऐसा नहीं है कि गरीब वर्ग के बच्चों को पढ़ने का हक नहीं है आज गरीब बच्चों को पढ़ने के लिए अनेक सुविधाएँ हैं अनेक संस्थान है जो गरीब बच्चों को आगे बढ़ने में मदद करती हैं। मजदूर लोग अपने बच्चों के भविष्य का इसलिए भी नहीं सोचते क्योंकि वह इतना ही कमा पाते हैं जितने में उनका घर चल सके वे खुद भी शिक्षित नहीं है जो अपने बच्चों को बढ़ने में मदद करे। यदि कम उम्र में बच्चों को मजदूरी और दूसरों के काम की जिम्मेदारी डाल देते हैं तो वह बच्चे कभी अपने भविष्य की नहीं सोचते वे खुद भी अपना जीवन वहीं तक सीमित कर देते हैं। आज अधिकांश ऐसी छोटी बच्चियां है जो लोगों के घरों में काम करती है अर्थात जो उम्र उनके पढ़ने की उस उम्र में सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ उन पर पढ़ता है। काम करते करते उनकी यह स्थिति हो जाती है कि जब उन्हें कोई पढ़ने की प्रेरणा दे भी तो वह पढ़ने से इंकार कर देते हैं क्योंकि उनकी मानसिकता ही वहीं बन जाती है।
अधिकांश घरों में जब गरीब बच्चे काम करते हैं तो उनको शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है क्या गलतियां सिर्फ बच्चों से ही होती है, व्यक्ति यह नहीं सोचता कि शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना बच्चों को किस तरह प्रभावित करती है। यदि व्यक्ति बच्चों से बचपन में ही मजदूरी करवाएगा तो वह बच्चे भी अपने आप को वहीं तक सीमित कर देगे और यह प्रथा फिर चलती रहती है, छोटे बच्चे मिट्टी की तरह होते हैं, जिस प्रकार मिट्टी को किसी भी आकार में परिवर्तित किया जा सकता है उसी प्रकार छोटे बच्चों को भी आप जिस तरह ढालोगे वह ढल जायेगें, क्योंकि कम उम्र में बच्चों का दिमाग इतना विकसित नहीं होता है वह जीवन की गतिविधियों से परिचित नहीं होते ना ही इतने परिपक्व होते हैं कि वह अपना अच्छा बुरा समझ सके यह शिक्षा एक माता-पिता ही दे सकते हैं कि शिक्षा बच्चों के लिए जरूरी है उनसे उनका बचपन छिनना सही नहीं है।
बाल श्रम के कारण:
सबसे बड़ा कारण यही है कि व्यक्ति को अपना परिवार चलाना है उसके लिए वह चाहता है कि अधिक से अधिक काम करे चाहे वह बच्चा भी क्यूं न हो, आज अधिकांश बड़े शहरों में ऐसा होता है बच्चों को शारीरिक कष्ट देकर उनसे भीख मंगवाई जाती है और यह लोगों का व्यापार हो गया है क्योंकि जब मासूम बच्चे सड़को पर मांगने के लिए जाते हैं तो कोई व्यक्ति उन्हें रूपये देने से मना नहीं कर पाता। बच्चों से मजदूरी करवाई जाती है क्योंकि एक मजदूर को अपना परिवार चलाना होता है। अधिकांश समय ऐसा होता है मजदूरों पर विपदा आती है और उन्हें दर- दर भटकना पड़ता है वहीं उनके साथ उनके बच्चों को भी संघर्ष करना पड़ता है। बच्चे भविष्य है देश का यदि आज एक बच्चा शिक्षित होगा कल अनेक होगे। अधिकांश मजदूर ऐसे होते हैं जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए बच्चों से काम करवाते हैं। बच्चों को दुकानों पर काम करवाते हैं जो उनकी उम्र में करने के नहीं होते। जब बच्चे बड़े घरो में काम करते हैं तो मशीन की तरह उनसे काम करवाया जाता है उस समय बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से भी प्रभावित होते हैं। बच्चों से काम इसलिए करवाया जाता है क्योंकि बच्चों पर व्यक्ति दबाव डाल सकता है जैसे चाहे वैसे काम करवा सकता है। आज अनेक लोग गरीबी को बढ़ावा दे रहे हैं। यदि व्यक्ति एक बच्चे से मजदूरी करवाता है या अन्य काम करवाता है तो वहीं उसकी मानसिकता बन जाती है क्योंकि कम उम्र में ही जिन जिम्मेदारियों का बोझ उस पर पढ़ जाये वहीं उसका जीवन बन जाता है। यदि गरीब परिवार में या मजदूर के परिवार में माता-पिता एक बच्चे को भी शिक्षित करता हैं तो वह अनेक मजदूरों के बच्चों के लिए प्रेरणा बनता है।
बाल श्रम रोकने के उपाय:
हर व्यक्ति को यह समझना जरूरी है कि बच्चों से उनकी उम्र से बडे़ काम न करवाये जिस प्रकार एक मजदूर अपने बच्चे से मजदूरी करवाता है, वह अपने बच्चे को शिक्षा भी प्राप्त करवा सकता है बिना उसे मजदूरी करवाये और अपनी कमाई का कुछ हिस्सा वह बचाकर अपनी अनावश्यक आदतों में रुपये बर्बाद करने की बजाय वह रुपये अपने बच्चे को शिक्षित करने में लगाये। बच्चों से सड़कों पर मंगवाने की बजाए उन्हें खाने को भोजन दे। लोग अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने का मार्ग बच्चों को न बनायें। जिन घरों में बच्चों से अधिक काम करवाया जाता है उनको शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है उन्हें यह समझना चाहिए कि बच्चे उनके भी गरीब के बच्चे भी बच्चे ही हैं, उन्हें बच्चों से काम करवाने की बजाय उनकी सहायता करना चाहिए उन्हें पढ़ने के लिए किताबे देना चाहिए उन्हें शिक्षा देनी चाहिए कि यह उम्र काम करने की नहीं है। आज यदि एक व्यक्ति मदद करेगा कल अनेक करेगे जरूरी है पहल करना। जरूरी है यह समझना कि यदि आप गरीबी को बढ़ावा दोगे तो वह बढ़ेगी। यदि आज एक भी मजदूर का बच्चा मजदूरी छोड़ पढेंगा तो अनेक माता-पिता को प्रेरणा मिलेगी और तब उनके बच्चे भी मजदूरी और मांगने का काम छोड़ शिक्षा प्राप्त करने की सोचेंगे क्योंकि आज भी हमारे समाज में सोच है व्यक्ति एक दूसरे को देखकर आगे बढ़ता है या अपने बच्चे को आगे बढ़ाता है इसलिए जरूरी है पहल करना और बाल मजदूरी खत्म करना।