भारत में निजता के अधिकार से संबंधित प्रमुख वादो के तथ्य

निचता का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में में उल्लेखित प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का ही एक भाग है। निजता के अधिकार को समझने से पहले संविधान के अनुच्छेद 21 को समझ लेना अनिवार्य है।

अनुच्छेद 21- प्राण औऱ दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण

किसी भी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रकिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नही। निजता के अधिकार को जानने से पहले निजता शब्द को जानना अनिवार्य है।

ब्लैक लॉ डिक्शनरी के अनुसार

निजता का मतलब है अकेले रहना अर्थात जब कोई भी व्यक्ति अपने निजी कार्यो में किसी अन्य को न ही दिखाए व न ही हस्तक्षेप करना पसंद करता है उसे साधरण तोर पर निजता माना जाता है व भारत के किसी भी नागरिक को उसके अपने स्वयं के परिवार, विवाह, खरीद, मातृत्व, बच्चे पैदा करने और अन्य मामलों में शिक्षा की गोपनीयता को सुरक्षित रखने का अधिकार है निजता का अधिकार गोपनीयता से जुड़ा हुआ हैं अर्थात जब कोई भी व्यक्ति के जीवन में कुछ भी ऐसा हो जो निजि तोर पर व्यक्तिगत हो। निजता के अधिकार को एकांतता का अधिकार भी माना जाता है।

नैसर्गिक न्याय

निजता केअधिकार को नैसर्गिक न्याय के रूप में माना जाता है अर्थात यदि किसी व्यक्ति के अधिकारो का उल्लघंन होता है तो वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय व अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय से अधिकारों के उलंघन के लिए जनहित याचिका दायर कर सकता हैं। पीड़ित व्यक्ति यह याचिका स्वयं व किसी अन्य व्यक्ति से भी दायर कर सकता है भारत में निजता के अधिकार से संबंधित प्रमुख वाद

खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार ए.आई.आर 1963 एस .सी 1295

इस प्रमुख वाद में कहा गया की व्यक्तिगत स्वतंत्रता केवल शारीरिक संयम या कारावास तक सीमित नहीं है, बल्कि एक अनिवार्य शब्द के रूप में प्रयोग किया जाता है, व इसमे सभी अधिकार जो अनुच्छेद 19 (1) के अलावा किसी अन्य व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बनाने के लिए जाते हैं। ) दूसरे शब्दों में, जबकि अनुच्छेद 19 (1) विशेष प्रजाति या विशेषताओं के साथ काम करता है, वो व्यक्तिगत स्वतंत्रता है।

इस प्रमुख वाद मे खड़क सिंह पर डकैती का आरोप था पर उसके खिलाफ कोई भी सबूत नही था। इस वजह से खड़क सिंह को रिहा तो कर दिया गया परंतु उसे यू0पी0 236 रेगुलेशन के तहत सर्जन निगरानी के तहत रखा गया। पुलिस अधिकारियों द्वारा उसके घर रोज़ निगरानी करने जाना व बार बार पूछताछ करने जाना इससे खड़क सिंह के निजता के अधिकार का उल्लघंन हो रहा था। तब याचिककर्ता( खडक सिंह) द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका दायर की गयी जिसमे यू0पी0 पुलिस विनियम के अध्याय XX के अन्तगर्त 236 विनियम को चुनोती दी गयी। माननीय न्यायालय ने यह निर्णय दिया की पुलिस 236 विनियम संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लघंन करता है अतः यह असंवैधानिक है।

क्या फ़ोन रिकॉर्ड करना भी निझता के अधिकार का उलंघन है

किसी भी व्यक्ति के फोन की रेकॉर्डिंग करना या फ़ोन को टेप करना निजता के अधिकार का उल्लंघन ही हैं यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की रेकॉर्डिंग कर के उसे ब्लैकमेल करता हैं तो वो पीड़ित व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत व उच्चत्तम न्यायालय में व संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता ह।

पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया ए.आई.आर 1997 एस.सी 568 इस प्रमुख वाद में कहा गया की किसी की व्यक्ति के फ़ोन की टैपिंग करना संविधान के अनुच्छेद 21 में दी गयी निजी स्वतंत्रता का उल्लघंन करना है। समाजिक हित के लिए टैपिंग करना यदि टैपिंग सामाजिक हित के लिए की जा रही हो वहां यह नही कहा जा सकता की ये अधिकारो का उल्लघंन कर रही है।क्योंकि यदि सरकार के द्वारा या प्रशासन के द्वारा आदेश हो तो वह पूर्ण रूप से मान्य होगा

व्यक्तिगत दस्तावेज भी नीचता के अधिकार से संबंधित है?

किसी भी छात्र के व्यक्तिगत दस्तावेज व स्थानांतरण प्रमाण पत्र भी निजात से संबंधित हैं अतः किसी भी विद्यालय द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को किसी के भी व्यक्तिगत दस्तावेज देखने की अनुमति नही हैं बिना अनुमिति लिए। सिर्फ छात्र ही अपने व्यक्तिगत दस्तावेज ले सकता हैं।

आधार कार्ड से संबंधित नीचता का अधिकार के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारत संघ ए .आई.आर 2015 एस.सी 3081 इस प्रमुख वाद में कहा गया की आधार कार्ड का डाटा जो डेमोक्रेटिक ओर बियोमैट्रिक् डाटा जो समाज के नागरिकों के लिए ही हैं यह संविधान के अनुच्छेद 21 में उल्लेखित निजता के अधिकार का उल्लघंन करता है। परंतु 27 सितम्बर 2018 को उच्चतम न्यायालय ने यह याचिका को स्वीकार करने से मना कर दिया की आधार कार्ड से जुड़े डाटा उंगलियों के निशान बायोमेट्रिक डाटा संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए निजता के अधिकार का उल्लघंन नही करता।

ज़ूम एप:

सबसे पहले यह जानना अनिवार्य हैं की ज़ूम एप् क्या है?

ज़ूम एप् एक ऎसा एप् है जिसके जरिये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कॉल की जाती है। इस मीटिंग में एक साथ 100 लोग जुड़ कर कॉल कर सकते है।
भारत में सम्पूर्ण कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन हो जाने के बाद सभी कंपिनयों, व सभी कार्यालयों व न्यायालयो को यह आदेश दिया गया की कार्य वीडियोकॉन्फ्रेंसिंग के जरिये होगा जिसके लिए भारत के नागरिक ज़ूम एप का प्रयोग कर रहे थे।

यह याचिका हर्ष चुघ द्वारा दायर की गयी है जिसमे याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि इस ऐप को आधिकारिक और व्यक्तिगत दोनों उद्देश्यों के लिए प्रतिबंधित किया जाना चाहिए व जब तक कि डेटा सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने वाले एक उपयुक्त कानून को लागू नहीं किया जाता है। परंतु इस एप द्वारा हमारे देश का व्यक्तिगत डाटा लीक हो रहा है व इसका दुरुपयोग होने का ख़तरा है इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश एस. बोबडे ने दिनाँक 22 मई को 2020 को यह ने केंद्र सरकार से जवाब मंगा है की इस एप् पर बैन लगना चाहिए क्योंकि इससे हमारे देश के लाखो व्यकितयों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन हो रहा है जिस कारण इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए ।

गोपनीय सूचनाओ के हैक होने का खतरा इस एप् द्वारा हमारे देश की जितनी भी गोपनीय सूचनाएं है उनके हैक होने का खतरा है। क्योंकि इसमे जो रूम बनाये जा रहे है वो डाटा लीक होने का खतरा हैं

साइबर अपराध

हमारे देश का डाटा लीक हो जाने से साइबर अपराध बहुत बढ़ जाएगा इसलिए ये हमारे लिए खतरे का अलर्ट है व्यक्तिगत डाटा चोरी होने की संभावनाएं इस एप् के जरिये कोई भी हमारी आईडी हैक कर के हमारे व्यक्तिगत मैसेज को पढ़ सकता है व उसका दुरुपयोग हो सकता है

अकाउंट हैक होने का खतरा

इस एप् के जरिए अकाउंट के हैक होने का खतरा है एक रिपोर्ट के मुताबिक इस एप् के जरिये 5 लाख अकाउंट
हैक हो चुके है। अतः हम देख सकते है की ज़ूम एप् के जरिये हमेरी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लघंन हो रहा है व नीचता के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।

हमारे कर्तव्य

अधिकारो के साथ ही साथ हमे आने कर्तव्यो पर भी ध्यान देना होगा हमारा भी यह अधिकार बनता है की ऐसे एप् जो हमारे देश के लिए खतरा है हमे उनका प्रयोग नही करना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 32 ओर 226 में मोलिक अधिकारो के जरिये हमारे किसी भी अधिकार के उल्लघंन पर हम याचिका दायर कर सकते है पर हमारा भी यह कर्तव्य हैं की हम कोई भी ऐसा कार्य न करे जिससे किसी भी व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन हो।

एडवोकेट पारुल पेशे से एक वकील, कानूनी सलाहकार, सामाजिक लेखक, और लेखसागर टीम में कानूनी सलाहकार सदस्य।

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