नारी सशक्तिकरण एक नारा या सच्चाई
नारी ईश्वर की एक अद्धभुत रचना है। और दुनिया को प्रदान की गयी ईश्वर की अनमोल देन है। कहते हैं जब ब्रह्मा देवता ने नारी को बनाया तो उसकी ख़ूबसूरती को देखकर वह खुद भी अचंभित रह गए।जब नारद देव ने उनसे पूछा की” हे देव इस रचना जैसी कोई और रचना नहीं हो सकती,परन्तु इसकी आँखों में आँसू क्यों हैं “?।तो उन्होंने बताया की यह मेरी सबसे उत्कृष्ट रचना है। पर पृथ्वीलोक पर जाकर इसको बहुत से कष्टों और तकलीफ का सामना करना पड़ेगा, आँसू एक माध्यम है इसको अपने दुःखों को कम करने का।यह तो एक पौराणिक कहानी थी जो मैंने पहले कभी सुनी थी।इसको मैंने इसलिए साझा किया क्योंकी ज्यादातर किसी बात पर रोना महिलाओं की कमज़ोरी माना जाता हैं, पर यह उसका एक जरिया हैं,कठनाईयों के लिए तैयार होकर उसका सामना करने कि।नारी यानि शक्ति का स्त्रोत्र हैं।इस शक्ति के स्तोत्र से ही पूरी दुनिया को रौशनी मिलती हैं।
हम बात करते है ग्रामीण भारत में महिला कितनी सशक्त हैं।इस दुनिया में हर महिला का एक अच्छी और उच्च शिक्षा पर हक हैं।और इस शिक्षा का उपयोग करके वह खुद को और अपने परिवार को आत्मनिर्भर बना सकती हैं।और हमारे समाज में भी एक सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं।ग्रामीण भारत की महिलाये हमेशा से ही सशक्त, हिम्मतवाली, और अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए कठिन संघर्ष करने वाली रहती हैं।पर परिस्थितियाँ, पाबंदिया व संस्धानों के आभाव में उनकी प्रगति एक सिमित दायरे में ही हो पाती हैं।महिलाओ का सशक्तिकरण उनके खुद कि उन्नति के लिए,परिवार के लिए और ग्रामीण समाज के विकास के लिए है, अपितु सम्पूर्ण देश के लिए है।
वक़्त बदला हैं, आज इक्सिवी सदी में ग्रामीण भारत की महिलाये भी नए नए मकामो को हासिल कर रही हैं।ज़रूरत रहती हे की वो अपने हुनर को पहचान सके और उसके परिवार का और समाज का अगर उसे साथ हो तो वह अपने उपलब्धियों का परचम फ़हरा सकती हैं।अभी कुछ समय पूर्व ही प्रदर्शित सिनेमा “सांड की आँख ” उसका एक प्रेरक उदाहरण है।उसमें दिखाया गया कि उन दोनों महिलाओ मे कितना बड़ा हुनर था पर सामाजिक बंधनो,रीति -रिवाजो,उसूलो,नियम कायदो के कारण वे काफी देर बाद सामने आया।उनकी निशानेबाजी के हुनर के कारण पूरी दुनिया मे हमारे देश का नाम रोशन हुआ।
ऐसे अनेक उदाहरण होंगे जिनमे हुनर कि कोई कमी नही है,पर कही न कही समाज कि संकुचित सोच के कारण वह बाहर नही आ पाते और अपनी कला के प्रदर्शन नहीं कर पाते।
ऐसे कुछ क्षेत्र जिसमे महिलाओं को ग्रामीण भाग में और सशक्तिकरण की जरुरत है:-
शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र का और विस्तार होना चाहिये। बदलते भारत के नए विचारो का स्वागत किया गया हैं। ग्रामीण भाग में भी शिक्षा कि अहमियत को समझा गया हैं। प्राइमरी शिक्षा सब बच्चो के लिए अनिवार्य की गयी हैं, इस मुहीम में लड़का -लड़की का भेद -भाव न करते हुए सरकार का साथ देना चाहिए और इस मुहीम को आगे बढ़ाना चाहिए। ताकि गाँव -गाँव में हर घर साक्षर रहे। ग्रामीण भाग में अभी भी शिक्षा प्रणाली को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता हैं। खासकर लड़कियों के लिए जैसे-तैसे प्राइमरी शिक्षा पूरी करने के बाद उनकी आगे की पढाई पर रोक लग जाती हैं। जो की अब सुधरना चाहिए।
रोज़गार व्यवस्था
ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं, इसमे ग्रामीण भाग की महिलाएँ अपना योगदान दे रही हैं, जैसे -कृषि, खेती-बाड़ी, लघु गृह-उद्योग, (मिर्च-मसाले, अचार -पापड़, सिलाई, कढ़ाई -बुनाई आदि )। हमारे देश के विकास में कृषि क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान हैं, और कृषि क्षेत्र के विकास में ग्रामीण भाग की महिलाओं की बहुत बड़ी भूमिका हैं। पर उनके योगदान के अनुसार उनको उतना मूल्य नहीं मिल पाता। उनको एक किसान का दर्जा नहीं दिया जाता। और ज्यादातर खेत भी पुरुष सदस्य के नाम पर होते हैं। इस सोच को बदलना चाहिए। गृह -उद्योग के विकास के लिए आधुनिक मशीनरी की उपलब्धि करानी चाहिए। उसके लिए महिलाओं को बैंको से ऋण की सुविधा आसानी से उपलब्ध करानी चाहिए। ताकि उनको अपने उद्योग को शुरुवाती स्तर पर स्थापित करने में प्रोत्साहन मिल सके। आधुनिकता के इस दौर में मोबाइल के इंटरनेट द्वारा भी बहुत सी चीज़े आसान हो जाती हैं।
उसका उचित दिशा में उपयोग करते हुए ऐसे बहुत से मोबाइल एप्प बनाये गए हैं, जिसमे रजिस्टर करके महिलायें अपने उद्योग को आगे बढ़ा सकती हैं।
व्यवसायिक प्रशिक्षण
कोई भी व्यवसाय शुरुआत करने से पहले उससे संबंधित उचित प्रशिक्षण प्राप्त करने से उद्योग ज्यादा सफलतापूर्वक चल सकता हैं। यह संस्थाये अगर महिलाओं के घरो के समीप जगह पर रहेगी तो उनको भी ज्यादा सहूलियत रहेगी। और ज्यादा संख्या में महिलाये व्यवसायिक प्रक्षिशण प्राप्त करने के बारे में विचार कर सकती हैं। क्योंकि प्रक्षिशण संस्थाओं का क्षेत्र के बाहर की जगहों पर होना भी एक बहुत बड़ी त्रुटि बन कर रह जाती हैं। महिलाओं के लिए घर -परिवार को सँभालते हुए प्रक्षिशण के लिये ज़्यादा दूर जाने में असुविधा होती हैं। इसलिए ज्यादा से ज्यादा संस्थाये अगर उनकी पहुँच में रहेगी तो ज्यादा बेहतर परिणाम मिल सकता हैं।
प्रथाएं
अभी भी ऐसी कुछ प्रथाये ग्रामीण भाग में प्रचलित हैं, जो कही न कही महिलाओं के सशक्तिकरण क़ि राह में अवरोध उत्पन्न करती हैं। जैसे की लड़कियों की कम उम्र में ही शादी कराना, लड़की बालिग होने के बाद भी उसकी मर्जी से शादी न होने देना, दहेज़ प्रथा, परिवार में उनके निर्णय लेने की क्षमता को मान न देना, घरेलु हिंसा, उनकी शिक्षा को पूरा होने से पहले ही बंद कराना, लिंग भेद-भाव होना, महिलाओं को जल्दी गर्भधारण के लिए मजबूर करना, आदि। यह सब कुछ ऐसी प्रथाये हैं, जिसमे नयी और सुलझी हुई सोच की जरुरत हैं।
हमारे देश में हम नारी को पूजते हैं, ग्रामीण भाग हमारे देश की नीव हैं, वहाँ की महिलायें हुनर, हिम्मत और शक्ति में किसी से कम नहीं, जरुरत हैं तो बस मानसिकता में बदलाव की, सकारात्मक सोच की, समाज के लोगों के समर्थन कि, जब नीव मजबूत होंगी, हमारे देश का इतना बड़ा और मुख्य हिस्सा अगर सशक्त होगा, तो सही मायने में महिलाओं के सशक्तिकरण की परिभाषा पूर्ण होगी।