आजकल ज्यादातर मामलों में युवा लव मैरिज करते नजर आते हैं। लेकिन कई बार दोनों पार्टनर की जाति और धर्म अलग-अलग होते हैं। वह कहा जाता है कि “प्यार में जाति, धर्म, पैसा नहीं देखा जाता है।” लेकिन परिवार सहित रिश्तेदार तो इन सभी जातिगत भावनाओं को मानते हैं। आप सभी जानते हैं कि जाति को लेकर भेदभाव हमारे भारत में सालों से चल रहा है। बहुत से लोगों की सोच आज भी इसी बात पर अटकी हुई है कि अगर उनके बच्चे की शादी किसी और जाति और धर्म में होती है तो लोगों और रिश्तेदारों के सामने उनका सम्मान नीचे गिर जाएगा। बहुत से मां-बाप के लिए बच्चों की खुशी और उनकी पसंद बाद में आती है। पहले समाज और रिश्तेदारी में उनका सम्मान आता है।
अगर हम समाचार पत्रों में शादी के इश्तहारों को देखें तो वहाँ भी जातीय आधार पर वैवाहिक विज्ञापन छपे जाते हैं। यहाँ तक कि वैवाहिक वेबसाइटों पर भी जाति, वर्ण, रंग आधारित विज्ञापन होते हैं।
ऐसे लोगों से आपको बात करके ही पता चलेगा कि फैलती वैश्विकता, बढ़ते विकास और शिक्षा की चकाचौंध में भी कुछ लोग जाति की लकीर खींचते जा रहे हैं। ऐसे लोग अपनी कम्युनिटी के माहौल से निकलकर किसी और जाति पर विश्वास नहीं करना चाहते।
भले ही भारत सरकार अंतरजातीय विवाह को महत्व दे रही हो लेकिन अधिकांश शिक्षित समाज के लोगों की सोच अब भी अनपढ़ों से भी गुजरी है। इंडिया डिजिटल तो हो रहा है लेकिन मानवीय विकास ज्यादा विकसित नहीं हुआ है।
“पढ़े-लिखे” नौकरी कर रहे बच्चों के दिमाग में भी कुछ माता-पिता और समाज के कुछ ठेकेदार संजीदा तरीकों से जातिवाद का जहर फैलाते हैं। कई बार तो यह अंतरजातीय विवाह ऑनर किलिंग जैसे भयानक जुर्म का रूप ले लेती हैं, जहां एक परिवार सम्मान और परंपरा के चलते अपने ही परिवार के एक व्यक्ति की हत्या कर देता है।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार पिछले आठ सालों में भारत में ऑनर किलिंग की लगभग 500 हत्याएं हो चुकी हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल दुनिया में 5 हजार से ज्यादा ऑनर किलिंग के मामले सामने आते हैं।
इस तरह के अपराध और जातिवाद के बारे में कुछ लोगों की सोच बड़ी चिंता का विषय है। आज भारत निश्चित रूप से नई ऊंचाइयों को छू रहा है, लेकिन 21वीं सदी में भी हमारे देश में कई लोग रूढ़िवादिता की जंजीरों में बंधे हुए हैं।
इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए, भारत सरकार ने एक नई योजना लायी है जिसके द्वारा जातिगत और सामाजिक भावनाओं को दूर कर, लोगों की सोच को बदलने का प्रयास किया जाएगा। इस महत्वपूर्ण योजना के तहत, जो अंतर्जातीय विवाह कर रहे लोग हैं, सरकार उन्हें 2.5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान करेगी।
चलिए, हम इस सरकारी योजना के बारे में विस्तार से जानते हैं:
- अंतर्जातीय विवाह के नियम क्या हैं?
- इस योजना के अनुसार, पति और पत्नी में से एक की अनुसूचित जाति से होना आवश्यक होता है जबकि दूसरे की जाति अनुसूचित नहीं होती।
- पति-पत्नी का विवाह कानून द्वारा स्वीकृत एवं 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत होना अनिवार्य होता है।
- दूसरी शादी करने वाले इस योजना का फायदा नहीं उठा सकते हैं।
- शादी के एक साल के अंदर नवदंपति को डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन पर आवेदन भेजना होगा।
- राज्य या केंद्र सरकार द्वारा पहले आर्थिक सहायता प्राप्त कर चुके नवदंपति की इस योजना में प्राप्त हुए राशि में से ढाई लाख रुपये घटाए जाएंगे।
- नवदंपति को भारत का नागरिक होना जरूरी है। (जिस राज्य से आवेदन करें, उसका नागरिकता होना आवश्यक है।)
- नवविवाहित के पास अपना आय प्रमाण पत्र होना चाहिए। (वैसे अब राज्य सरकार ने सालाना आय के प्रमाण पत्र को खत्म कर दिया है। ताकि ज्यादा से ज्यादा नवदंपति इस योजना का लाभ ले सकें।)
- विवाह करने वाली जोड़ी में लड़की की आयु 18 साल से अधिक होनी चाहिए और लड़के की आयु 21 साल से अधिक होनी आवश्यक है।
- अंतरजातीय विवाह योजना के अंतर्गत प्राप्त हुई राशि को नवदंपति विवाह के 3 वर्ष बाद ही निकाला जा सकता है।
- इस योजना का लाभ उठाने के लिए क्या करें?
- इस योजना का लाभ उठाने के लिए नवदंपति को अपने क्षेत्र के सांसद या विधायक की सिफारिश के साथ आवेदन भरकर डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन को भेजना होगा।
- अगर नवदंपति ने आवेदन जिला प्रशासन या राज्य सरकार को भेजा है तो भी उस आवेदन को जिला प्रशासन या राज्य सरकार डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन को भेजेगी।
- नवदंपति इस योजना का लाभ उठाने के लिए इस वेबसाइट http://ambedkarfoundation.nic.in पर ऑनलाइन आवेदन भी कर सकते हैं।
- अंतरजातीय विवाह योजना के लिए आधार कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, आयु प्रमाण पत्र, कोर्ट मैरिज प्रमाण पत्र, बैंक अकाउंट पासबुक, जाति प्रमाण पत्र, मोबाइल नंबर जैसे दस्तावेज आवश्यक होंगे।
- अंतर्जातीय विवाह योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन कैसे करें?
- सबसे पहले http://ambedkarfoundation.nic.in आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं।
- फिर ऑनलाइन आवेदन फॉर्म पर क्लिक करें।
- उसके बाद ध्यान से फॉर्म को पढ़ें और उसे पूरा करें।
- इसके बाद अपने सभी दस्तावेजों को सबमिट करें।
- भरे हुए फॉर्म का प्रिंट आउट निकालें।
- अंतरजातीय विवाह कब वैध हुआ?
अंतरजातीय विवाह को मान्यता देने के लिए विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों का निर्माण किया गया है। साथ ही, अलग-अलग कानून भी बनाए गए हैं। जहाँ मुस्लिम पर्सनल लॉ 1937, पारसी विवाह अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विवाह विच्छेद 1936, भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम 1954 को मुख्य कानून में रखा गया हैं।
- अंतरजातीय विवाह पर डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचार?
संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए अपने कुछ विचार रखे थे। अनुसार, अंतरजातीय विवाह के बाद कई लड़कों और लड़कियों को उनके परिवार वालों का समर्थन नहीं मिलता है। ऐसी स्थिति में सरकार को इन जोड़ों की आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए ताकि परिवार से उनकी असहयोगी की भरपाई हो सके और नवदंपति अपने भविष्य को संवार सकें।
- समाज में अंतर्जातीय विवाह की अनुमति क्यों नहीं दी जाती?
अलग-अलग जाति और धर्म के लोग अलग-अलग संस्कृति और संस्कारों में पले-बढ़े होते हैं। समाज में लोग ऐसा मानते हैं कि अंतर्जातीय विवाह करने वाले जोड़े के लिए एक-दूसरे की संस्कृति का पालन करना कठिन होता है। लोग यह भी कहते हैं कि अंतर्जातीय विवाह से होने वाले बच्चे वर्णसंकर होते हैं जिनको पिंडदान करने का अधिकार नहीं होता। समाज के कुछ लोगों के अनुसार, अंतर्जातीय विवाह से होने वाले बच्चों से पिंडदान और तर्पण स्वीकार नहीं होता। अलग-अलग जाति के माता-पिता के कारण संतान के अंश में अंतर होता है, जो संतान के कुल का नाश कारण बनते हैं।
कुछ लोग अंतरजातीय विवाह को महाभारत के युद्ध से भी जोड़कर देखते हैं। जहाँ क्षत्रिय होते हुए भी महाराज शांतनु ने मछुआरे की कन्या सत्यवती से विवाह किया। जिसके बाद भीष्म ने सत्यवती के संतान के लिए ब्रह्मचर्य का पालन किया। फिर महर्षि व्यास की कृपा से पाण्डु और धृतराष्ट्र का जन्म हुआ। लेकिन धृतराष्ट्र अंध थे। अंतरजातीय विवाह से उनके खानदान में जन्में पाण्डु और धृतराष्ट्र के पुत्रों के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ और उनके कुल का नाश हुआ।
16 अक्टूबर 2017 को डॉ. भीमराव अंबेडकर फाउंडेशन द्वारा सभी राज्यों के प्रधान सचिवों को अंतरजातीय विवाह के संबंध में सूचित किया गया था। नवविवाहित जोड़े को तुरंत डेढ़ लाख रुपये दिए गए थे और एक लाख रुपये तीन साल के लिए फिक्स डिपोजिट कराए गए थे।
अंतर्जातीय विवाहों की संख्या भारत के मिजोरम राज्य में सबसे अधिक है। मिजोरम में अंतर्जातीय विवाह का दर लगभग 55% है। वहीं मध्य प्रदेश में सबसे कम अंतर्जातीय विवाह होते हैं, जिसकी दर केवल 1% है। हालांकि इस्लाम धर्म में आदिवासी, नृवंशविज्ञान, इस्लाम नस्लीय या जाति के आधार पर अंतरजातीय विवाह को नहीं रोका जाता है। लेकिन किसी भी विवाह को इस्लामी वैवाहिक कानून के अधार पर होना जरूरी होता है। बच्चे मुस्लिम महिलाएं गैर-मुस्लिम पुरुषों से और कोई भी मुस्लिम पुरुष बहुदेववादी महिला से शादी नहीं कर सकता है।
स्टडी के अनुसार, दक्षिण राज्यों के लोग अंतरजातीय विवाह को बेहद कम उदार होते हैं। दक्षिण राज्यों के लोग अपनी संस्कृति, संस्कार और अपनी जाति को ज्यादा महत्व देते हैं।
भारत सरकार ने कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने के मकसद से अंतरजातीय विवाह योजना आरंभ की है। अब तक, हर राज्य में सरकार ने यह योजना जारी कर दी है। लेकिन 2016 से 2017 तक 7 युवाओं को और 2017 से 2018 तक 16 युवाओं को, अर्थात सिर्फ 23 युवाओं को, अंतरजातीय विवाह से संबंधित प्रोत्साहन राशि का लाभ मिला है।
समाज के कुरीतियों के खिलाफ साहसिक कदम उठाने वाले युवकों को इस योजना के प्रोत्साहन के रूप में राज्य सरकार द्वारा एक लाख रुपए और डॉ. भीमराव अंबेडकर फाउंडेशन द्वारा 2.50 लाख रुपए की धनराशि प्रदान की जाती है। सरकार का यह कदम बेहद सराहनीय है।
आज कल अंतरजातीय विवाह होना अब आम बात हो गई है। इसमें कोई गलती नहीं है। अंतरजातीय विवाह के कारण जातीय सद्भावना मजबूत हो रही है। वैवाहिक मामलों में रिश्तेदारों, मित्रों, और परिचितों का भी अहम योगदान हो रहा है। यदि दो लोग एक दूसरे को पसंद करते हैं तो वे अपने रीति-रिवाज, संस्कार और अपने परिवार के साथ एक दूसरे के साथ जीवन बिताने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस तरह, वे एक दूसरे के परिवार वालों को भी अपना सम्मान दिखाने के लिए समय निकालते हैं।