सुप्रीम कोर्ट के पास आए एक केस की सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से पूछा है, कि क्या बिना शादी के लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी से मुकरने पर महिला के प्रति पुरुष की कोई जिम्मेदारी बनती? क्या ऐसे में पुरुष को महिला को गुजारा भत्ता या संपत्ति में अधिकार देना होगा? क्या ऐसे संबंध को अपने आप ही शादी की तरह देखा जा सकता है?
शादी को लेकर हमारे समाज में कहा जाता है कि जोड़े आसमान में बनते हैं और शादी का बंधन सात जन्मों का होता है लेकिन आजकल नजारा कुछ बदला-बदला है, कई कपल ऐसे होते हैं जो किसी स्वर्ग के रिश्ते या सात जन्म के बंधन को मानने के बजाय लिव इन रिलेशनशिप को प्राथमिकता देने लगे हैं इन कपल्स को सामाजिक और कानूनी मान्यता दिलाने के लिए अदालतों ने लगातार ऐसे फैसले लिए हैं जिससे लिव इन बंधनों को दर्जा विवाह के बराबर हो जा रहा है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से लिव-इन-रिलेशन रिश्तों की पड़ताल करने को कहा है।
6 साल साथ रहकर शादी से मुकरा
लिव इन संबंधों में रह रही महिलाओं के अधिकार को सुरक्षित करने और शादी की बात कहकर यौन संबंध बनाने के बाद धोखा देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह जांच करने को कहा है कि किसी महिला के साथ लंबे समय तक साथ रहने और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने वाला कोई पुरुष अगर महिला के साथ शादी से मुकर जाता है तो क्या उसकी कोई जिम्मेदारी बनती है? क्या महिला को पत्नी की तरह गुजारा भत्ता, संपत्ति में हिस्सा और वाइफ का अधिकार दिया जा सकता है? क्या क्या ऐसे संबंधों को अपने आप ही शादी की तरह देखा जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ऐसे सवालों की पड़ताल करने के लिए तैयार हो गया है अदालत ने इस पर केंद्र सरकार से उसकी राय मांगी है। सुप्रीम कोर्ट इन रिलेशन में रहने वाली महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून के तहत आने, गुजारा भत्ता पाने और संपत्ति में हिस्सा पाने के योग्य करार पा चुका है। अब कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या लंबे समय तक चलने वाले करीबी रिश्तो को शादी जैसा माना जा सकता है? रिश्तो को शादी जैसा मांगने का पैमाना क्या होना चाहिए कितने वक्त तक चले रिश्ते को ऐसा दर्जा दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति की उस पर लगे रेप के आरोप के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया है। उस पर आरोप लगाने वाली महिला एक बच्चे की मां है, उसके साथ 6 साल से रह रही है, आरोपी ने महिला से शादी का वादा किया और बाद में मुकर गया।
तो फिर शादी बंद कर दो
1978 में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार एक लिव इन रिश्ते को कानूनी तौर पर सही ठहराया और कानूनी तौर पर विवाह के बराबर ठहराया। जस्टिस कृष्णा अय्यर ने फैसले में लिखा कि अगर पार्टनर लंबे समय तक पति और पत्नी की तरह रहें रह रहे हों, तो पर्याप्त कारण है कि इस विवाह माना जाए। इसे चुनौती दी जा सकती है, लेकिन यह संबंध विवाह नहीं था। यह साबित करने का दायित्व उस पथ पर होगा जो इस विवाह मानने से इनकार कर रहा है। आमिर खान-रीना, ऋतिक-सुजेन और अदनान सामी-सबा जैसी बॉलीवुड की जानी मानी हस्तियों के डिवोर्स केस हैंडल कर चुकी सेलिब्रिटी लॉयर मृणालिनी देशमुख कहती हैं, ‘2005 में प्रोटेक्शन ऑफ डोमेस्टिक वायलेंस के तहत फैसला सुनाते हुए सरकार ने लिव इन को मान्यता देते हुए लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन दिया। अगर उसे किसी भी तरह से पीड़ित किया जाता है तो वहां उसके खिलाफ इस एक्ट के तहत शिकायत कर सकती है। ऐसे संबंध में रहते हुए उसे राइट टू शेल्टरभी मिलता है। मुझे लगता है कि मेंटेनेंस तो ठीक है, मगर उसे प्रॉपर्टी में अधिकार नहीं मिलना चाहिए। अगर आप यह नियम लागू करते हैं, तो आपको शादी बंद कर देनी चाहिए इस तरह के कानून बनाने से विवाह संस्था को आघात पहुंचने की पूरी संभावना है। आप लेकिन को शादी की बराबरी का दर्जा दे देंगे तो हो सकता है लोग शादी के बजाय लिवइन को ही प्राथमिकता देने लगें।’