भारत की शानो-शौकत और जन्नत कहा जाने वाला राज्य कश्मीर आज हिंसा की आग में कुछ राष्ट्र विरोधी ताकतें व अलगावादी नेताओं की वजह से जल रहा है। सच ही कहा है किसी ने कि घर में साँप पालना अच्छी बात नहीं है, हमने तो सापों का पूरा परिवार बसा रखा है , ये खाते तो हैं, हिंदुस्तानिओं की खून पसीने की कमाई का, पर गाते हैं भारतीय विरोधी लोगो के विषय में। इस आर्टिकल के माध्यम से हम किसी एक धर्म, समुदाय या वर्ग के लोगों के मूल भावना को आहत नहीं करना चाहते। हमारा मकसद सिर्फ लोगो से अनुरोध करना है कि हिंसा को छोड़ कर शांति कायम करने में अपना योगदान दें।
कल जब सोशल मीडिया साइट पर अपना अकाउंट ओपन किया, तो अचानक अपने कुछ दोस्तों को ऑनलाइन देखकर ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। ख़ास बात ये थी, वो लोग जम्मू कश्मीर से हैं और उनसे बात करने के बाद दिल को बहुत राहत मिली कि चाहे हालत कैसे भी क्यों न हो हम हमेशा साथ हैं। कोई भी ताकत कितनी कोशिश क्यों न कर ले, हमे तोड़ नही सकती।
कश्मीर हमारे देश का ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे खूबसूरत मुकाम है, जिसके बारे में किसी ने कहा है कि “दुनिया में अगर कही जन्नत है, तो वो यहीं है”।
कश्मीर हिमालय की खुबसूरत वादियों में, भारत और पकिस्तान की सीमा रेखा पर स्थित वो स्थान है, जो बंटवारे के बाद से ही हमेशा विवादों में रहा है। आज़ादी के समय कश्मीर के महाराज ने भारत के साथ रहने का निर्णय किया क्यूंकि भारत ने उन्हें सुरक्षित रखने का वादा किया, पर भारत और पाकिस्तान आज तक उस ज़मीन पर अपना अपना हक़ साबित करने के लिए लड़ रहे हैं।
1990 के दशक में तो जैसे ये जनात जहन्नुम ही बन गई थी फिर कुछ समय से लगने लगा था की वादी की रौनक शायद वापस लोट रही है। युद्ध विराम के बाद से लोग भी अपने आप को सुरक्षित महसूस करने लगे थे, युवा नए सपने देखने लगे थे, पर्यटक वापस लोटने लगे थे और वीरान वादी फिर से आबाद होने लगी थी लेकिन जैसे इस खुबसूरत जगह को फिर किसी की नज़र लग गई और एक बार फिर जन्नत जलने लगी। हम नहीं जानते कि इसका असली ज़िम्मेदार कौन है?
वो आतंकवादी जो सीमा पार से आते हैं या फिर हुर्रियत और अलगाववादी और या फिर वो राजनेता जिनके लिए कश्मीर सिर्फ एक मुद्दा है,एक चुनावी मुद्दा। पर सच तो ये है की इनमे से किसी को भी कश्मीर के उन मासूम लोगो की फ़िक्र नहीं है, जो इस हालत में सबसे ज्यादा भुगतते हैं, वो बच्चे जो स्कूल जाना चाहते हैं, बाहर जाकर खेलना चाहते हैं, वो युवा, जो अपने करियर को लेकर परेशान हैं, वो माँ, जो अपने बच्चो के दूध के लिए परेशान हो रही है और वो गाइड और शिकारे वाले जिनका धंधा बंद हो चुका है।
क्या इनमें से किसी भी नेता के गहर में एक टाइम के खाने की परेशानी हुई? क्या उनके बच्चे परेशान हुए? क्या उनके आराम में किसी प्रकार की कमी आई? क्या उनका कोई भी अपना इस आग का शिकार हुआ? नहीं!
अपने आलिशान घरों में बैठ कर, मासूम लोगो की आजादी की बात करने वाले ये लोग खुद क्यों नही आते मैदान में हमेशा निर्दोष लोग ही क्यों शिकार बनते हैं। वो बेचारे, जिनको कई बार तो ये भी पता भी नहीं होता कि उन्हें किस बात की सज़ा मिल रही है।
हम अपील करते हैं उन लोगो से, जो की अपने कान बंद किये बैठे हैं, एक बार अपने आपको उन मासूम लोगों की जगह रख कर उनके दर्द को महसूस करके देखें और कोशिश करें कि वादी में फिर वही रौनक वापस लोट आये ।