राष्ट्रभाषा क्या है?
किसी भी देश में सबसे अधिक बोले और समझे जाने वाली भाषा को राष्ट्रभाषा कहते हैं। एक ऐसी भाषा जो पूरे देश में लोगों के बीच संपर्क बनाने का कार्य करती है व ही भाषा राष्ट्रीय भाषा होती है। राष्ट्रभाषा किसी भी देश के लिए केवल एक भाषा नहीं होती, बल्कि उस देश की संस्कृति की पहचान होती है। यह वह भाषा है जो सदियों से पूरे देश में पीढ़ी दर पीढ़ी छाई हुई हो और जो सम्पूर्ण जनमानस के हृदय में रच बस गई हो वही राष्ट्रीय भाषा होती है।
राष्ट्रभाषा की परिभाषा
राष्ट्रभाषा अर्थात राष्ट्र की भाषा। समूचे देश में विचार विनिमय के लिए जिस भाषा का प्रयोग होता है उसे हीं राष्ट्रभाषा कहते हैं। राष्ट्रभाषा का जुड़ाव सीधे उस देश की संस्कृति से होता है, राष्ट्रभाषा ना केवल एक भाषा होती है बल्कि उस देश की पहचान बन जाती है।
राष्ट्रभाषा की विशेषता क्या है?
राष्ट्रभाषा शब्द वास्तव में एक गौरव चिन्ह है जो उस भाषा को मिलती है जो देश की संस्कृति का अटूट हिस्सा हो, राष्ट्रभाषा की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि किसी भी बड़े या छोटे देश में, किसी भी अनजान जगह या अनजान इंसान से मिलने पर उससे संपर्क साधने के लिए साधारणतः इंसान जिस भाषा का प्रयोग करे वह राष्ट्रभाषा हीं होती है। वह भाषा है जो सम्पूर्ण देश में बोलने, लिखने, पढ़ने के लिए उपयोग में लाई जाती है, देश भर में सारे काम काज के लिये राष्ट्रीय भाषा को हीं उपयोग में लाया जाता है। उदाहरण स्वरूप बांग्लादेश की राष्ट्रभाषा बंगला है तो वहां का संपूर्ण काम काज बंगला भाषा में हीं किया जाता है।
हमारी राष्ट्रीय भाषा क्या है?
भारत देश में सबसे ज्यादा बोली और समझे जाने वाली भाषा हिन्दी है, देश में ज्यादातर लोगों को सामान्य जानकारी भी यही है की हमारे देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी है, किन्तु यह केवल हमारे देश के आमलोगों की धारणा है, क्योंकि हमारे देश में संवैधानिक रूप से अभी तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला है। हम अपने देश में हिंदी के सर्वाधिक प्रयोग को देखते हुए हिंदी को जो हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, राष्ट्रभाषा मान सकते हैं, लेकिन वास्तविकता ये है कि भारतीय संविधान में राष्ट्रभाषा का कोई उल्लेख नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 343 में हिंदी को केवल राजभाषा का स्थान दिया गया है।
राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अंतर क्या है?
राष्ट्रभाषा का उपयोग देश भर में होने वाले हरेक कामकाज के लिए किया जाता है, वहीं राजभाषा का उपयोग केवल राजकाज संबंधी कार्यों के लिए किया जाता है। राष्ट्रभाषा देश में सबसे अधिक लोगों में बोलचाल कि भाषा होती है, जबकि राजभाषा कोई भाषा हो सकती है। राष्ट्रभाषा का सीधा रिश्ता उस देश की संस्कृति से होता है, लेकिन राजभाषा का देश की संस्कृति से कोई लेना देना नहीं होता। सीधे तौर पर समझें तो राजभाषा केवल राजकीय कार्यों तक सीमित है, जबकि राष्ट्रभाषा का छेत्र बहुत हीं व्यापक होता है, वह बोलचाल से लेकर राजकाज तक, अर्थात पूरे देश में राजा और रंक सबके जीवन पर एवं कामकाज पर अपना कब्जा जमाए रहती है। इसके अलावा राष्ट्रभाषा एवम् राजभाषा के बीच एक सामान्य अंतर हम ये भी देख सकते हैं कि किसी भी देश में सामान्य तौर पर जो राष्ट्रभाषा होती है उसे हीं राजभाषा के रूप में चुना जाता है, या चुना जाना चहिए मगर राजभाषा के लिए जरूरी नहीं की वह राष्ट्रभाषा हो क्योंकि राजभाषा अपने राजकीय कार्यों तक सीमित है जबकि राष्ट्रभाषा का क्षेत्र असीमित है, वह राजकीय कार्य के प्रयोग के आलावा अन्य सभी कार्य एवं बोलचाल के लिए उपयोगी होती है।
राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी
हिंदी हमारे देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सर्वत्र अपना आंचल फैलाए हुए है, हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश के जड़ों में समाया हुआ है, यह भाषा पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे पूर्वजों के साथ रही और समय के बदलाव के साथ खुद में बदलाव लाते हुए अब हमारे नशों में समाई हुई है। हिंदी हमारे लिए केवल एक भाषा नहीं हमारे जीवन का अंग है, जिसके बिना सामान्य जन मानस एक दिन गुजारने की कल्पना भी नहीं का सकता है। हिंदी में भारतवर्ष कि संस्कृति की झलक दिखाई पड़ती है। संवैधानिक रूप से भले हीं इसे राष्ट्रभाषा का सम्मान अब तक नहीं मिल पाया हो, लेकिन भारत देश के अंदर हिंदी इतनी व्यापक है कि इसे किसी संवैधानिक ठप्पे की भी जरूरत नहीं। यह अपने विशाल उपयोग क्षेत्र के कारण राष्ट्रभाषा का रूप तो के हीं चका है। हिंदी को संविधान ने राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया है, लेकिन इस देश के लोगों के हृदय में वर्षों से हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में हीं स्थापित है। वास्तव में किसी भी देश की राष्ट्रभाषा में जितने गुण होने चाहिए वे सभी गुण हिंदी में विद्यमान है।
क्यूं नहीं मिला हिंदी को संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा कहलाने का अधिकार?
14 सितम्बर 1949 को भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा का स्थान दिया गया तब से लेकर आज तक हिंदी राजकाज की भाषा है यानि सरकारी कामकाज के लिए हिंदी का प्रयोग होता है किन्तु देश में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिल सका। भारत एक ऐसा देश है जहां कई राज्यों की संस्कृति अलग है, याद देश विभिन्नताओं में एकता का अनुसरण करने वाला देश है, इसी वजह से जब हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान देने का प्रश्न उठा तो कुछ दक्षिण भारतीय राजनेताओं ने अपने निजी स्वार्थ वस इसका घोर विरोध किया, उन्होंने जनता को भड़काना शुरू किया कि हिंदी के राष्ट्रभाषा बनने से दक्षिण भारतीय भाषा और संस्कृति हिंदी कि दासी बन कर रहेगी, इसी वजह से हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में एकमत स्थापित नहीं हो सका। इसीलए देश में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा को उसका उचित स्थान नहीं मिल पाया। यही कारण है कि हमारा देश भारत आज तक राष्ट्रभाषा विहीन है। जबकि हिंदी के साथ अंग्रेजी भाषा का राजभाषा के रूप में प्रयोग होने पर उन दक्षिण भारतीय राजनेताओं को कोई ऐतराज नहीं हुआ। इस तरह कुछ ओछी राजनीति के कारण हमारे देश में विदेशी भाषा अंग्रेजी को संवैधानिक रूप से मान सम्मान प्राप्त है, किन्तु यहां के जनमनास की भाषा हिन्दी को उसका पूरा अधिकार अब तक नहीं मिल पाया है।