बच्चों की परवरिश कैसे करें, इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप सहारा नहीं, बच्चों के साथी बने। हम अक्सर अपने बच्चो का सहारा बन्ने की कोशिश करते हैं, उन्हें हर बुराई से बचा के रखने की कोशिश करते हैं।
हमेशा इस कोशिश में रहते हैं कि उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ न हो, कहीं उन्हें चोट न लग जाये इस कोशिश में कई बार हम इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि बच्चों को सही गलत सिखाते-सिखाते खुद उन्हें गलत रास्ता दिखा देते हैं। हम उनकी परछाई बनके हर वक़्त उनके साथ रहना चाहते हैं। उनकी एक एक बात की खबर रखना चाहते हैं, पर कहीं हमारी ये आदत उनको पंगु तो नहीं बना रही? हम जानते हैं कि आज ज़माना बहुत खराब है। बच्चों को घर से बाहर भेजना भी ऐसा लगता है जैसे उन्हें किसी जंग पर भेज रहे हो।
रोज़ समाचारों और टीवी पर आने वाली खबरे दिल देहला देती हैं। बच्चे किसी भी अपराधी के लिए सबसे सॉफ्ट टारगेट माने जाते हैं। कोई भी आसानी से उन्हें बहला-फुसला सकता है। हम चाहे उन्हें कितना ही सिखा पढ़ा न दे पर उनका बालमन कभी उस बात को नही मान सकता और कई बार तो अपराधी वो लोग ही होते हैं, जिन पर हम सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं।
आज के वक़्त में किसी पर भी भरोसा करना आसान नहीं है, चाहे स्कूल हो या झूलाघर या घर पर ही किसी नौकर या रिश्तेदार के साथ। बच्चों के मामले में कोई भी पूरी तरह भरोसे के लायक नहीं है ऐसे माहोल में अगर हम 24 घंटे बच्चो की निगरानी न करे तो क्या करे ?
पर बच्चे इस बात को नही समझते उनके लिए तो ये सब रोकटोक उनकी आज़ादी और खेलकूद में आने वाली सबसे बड़ी रुकावट है। उन्हें ये सब उलझन लगता है और कभी कभी जब माँ बाप ज्यादा सख्ती दिखाते हैं, तो बच्चे उनसे कटने लगते हैं। वो बाते छुपाना शुरू कर देते हैं; जिद्दी हो जाते हैं; बात बात पे चिल्लाना और चीखना शुरू कर देते हैं।
इस हाल में क्या करे? मैं भी एक माँ हूँ और इन परेशानियों का रोज़ सामना करती हूँ। मैं सिर्फ अपनी तरफ से कुछ सुझाव दे रही हूँ, जो आपको इस हाल से निपटने में सहायक हो सकते हैं।
- अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बितायें। जहाँ तक हो सके उनके साथ ही रहे पर सीसी टीवी कैमरे की तरह उनकी निगरानी न करते रहें। बस ये ध्यान रखें कि वो क्या कर रहे हैं और किसके साथ हैं
- कोई भी गलती करने पर उन्हें समझाए; उन्हें बताये की इस गलती का क्या अंजाम हो सकता है।
जैसे अगर बच्चा लाइट के स्विच से खेल रहा है, तो उसे डराए नहीं बल्कि उसे समझाए की ऐसा करने से उसे करंट लग सकता है। आप चाहे तो कार्टून केरेक्टेर्स का सहारा भी ले सकती हैं।
- अगर दो बच्चे साथ में खेल रहे हैं, तो ध्यान दें कि वो किस तरह के खेल खेल रहे हैं। अगर आप को लगे कि कोई बच्चा कुछ गलत बात कर रहा है, तो उसे तुरंत ही समझाए और उन्हें साथ में मिलजुल कर खेलने को प्रेरित करें।
- बच्चों के साथ खेलने के लिए भी वक़्त निकालिए। इस तरह आपके बच्चे आपके और करीब आयेंगे और आप भी खेल-खेल में जान पाएंगे कि आप के बच्चे में क्या ख़ास गुण हैं।
- बच्चों को अधिक समय तक टीवी और कंप्यूटर पर न लगे रहने दे और चेक करते रहें कि वो किस तरह के प्रोग्राम देखना पसंद करते हैं। उन्हें शिक्षाप्रद कार्यक्रम देखने को प्रोत्साहित करें।
- बच्चों की गलत जिद को कभी पूरा न करें पर कभी-कभी उनकी ख़ुशी के लिए कोई जिद पूरी करना कोई बुरी बात नहीं, पर उन्हें ये भी समझा दें कि ये हर बार संभव नहीं है।
- बच्चो को आलसी न बन्ने दे। उन्हें उनके छोटे मोटे काम खुद करने कि आदत डालें।
- मम्मी पापा का और घर का फ़ोन नम्बर याद करवायें और किसी भी अनजान से कोई चीज़ न लेने की ताकीद करें।
- घर के आसपास के रास्ते और कोई निशानी, जो उसे घर की याद दिलाये हमेशा याद करायें।
- अगर कोई अनजान व्यक्ति उनसे बात करे, तो उसके साथ कहीं भी ना जाने की हिदायत दें।
- मुसीबत में पड़ने पर पुलिस सहायता लेने की बात भी समझा दें क्यूंकि ज़्यादातर बच्चे पुलिस के नाम से ही डरते हैं।
- अगर बच्चे के व्यवहार में कोई परिवर्तन दिखे, तो जानने की कोशिश करें कि वो ऐसा क्यों कर रहा है?
- पेरेंट्स टीचर मीटिंग के लिए अवश्य समय निकाले। इस तरह से आपके बच्चे को भी ख़ुशी मिलेगी और आप भी जान पाएंगे कि कहीं बच्चे को कोई परेशानी तो नहीं।
- आजकल ये कहा जा रहा है कि बच्चों को जो पसंद है, उन्हें उसमे ही आगे बढाया जाये, पर साथ ही मेरा सुझाव है कि बच्चों को पढ़ाई-लिखाई का महत्त्व भी समझाया जाये ताकि भविष्य में उनके पास अधिक से अधिक विकल्प हो।
- बच्चे को सिखायें कि अगर वो सफल न हो तो भी हताश न हो, ऐसे समय में उन्हें आपके साथ की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है। उन्हें बच्पन से ही हर हालात का सामना करने के लिए तैयार करें।
अपने बच्चे के लिए एक अच्छा मार्गदर्शक बनिए। उसे हर काम सही तरीके से करने का तरीका समझाइए; न की उसके ऊपर बंदिशे लगा के उसकी उडान को रोकिये।
उन्हें आप के साथ की ज़रूरत है, सहारे की नहीं। उनके लिए बैसाखी नहीं बनिये, उन्हें खुद के पैरों पे खड़े होने की सीख दीजिये ताकि वो इस दुनिया का सामना करने के लिए तैयार् हो सकें।
अगर आपके पास भी कोई और सुझाव हैं इस बारे में, तो आप हमसे शेयर कर सकते हैं। आप सब के विचारो का हम स्वागत करते हैं।