सब से पहले तो में सभी शिक्षकों को लेख सागर के माध्यम से शिक्षक दिवस की शुभ कामनाये देना चाहती हूँ, क्यूंकि ये दिन हर शिक्षक के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है।
कितना अच्छा लगता है जब सभी छात्र अपने शिक्षकों को शुभकामनायें तथा तोहफे देकर अपने सम्मान को दर्शाते है, एक अलग ही रिश्ता होता है, एक गुरु का उसके छात्रो के साथ! आज के परिवेश में तो शिक्षको का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है, क्यूंकि आज की पीढ़ी जो काफी उलझी हुई है जिसे सही राह दिखाने का काम शिक्षक ही कर सकते हैं । आज फिर एक बार ज़रूरत है चाणक्य और विवेकानंद जैसे शिक्षकों की जो देश के युवाओं में नई क्रांति की ललक जगा सके हमारे देश के भटके हुए युवाओं को सही राह दिखा सके, क्यूंकि शिक्षक ही किसी भी देश के विकास का आधार स्तम्भ होते है ।
हमारे देश में गुरु को भगवान् माना जाता है, क्यूंकि माँ पिता के बाद वे ही है, जो हमे जीने की सही राह दिखाते हैं। हर इंसान के जीवन में कोई न कोई गुरु ज़रूर होता है, जो हमे सिखाते हैं कि हमें इस दुनिया का सामना कैसे करना है। ये बात बिलकुल विचित्र नहीं है कि अच्छे बुरे की समझ हमें अपने गुरुओ से ही मिलती है। पहले लोग गुरुकुल में रहते थे । अनुशाषन और नियमों का द्रढ़ता से पालन करना सीखते थे और जब अपनी शिक्षा पूरी करके वो शाषन की बागडोर संभालते थे, तो वो इतने परिपक्व हो चुके होते थे कि बड़ी से बड़ी मुश्किल भी उन्हें डिगा नहीं पाती थी। इतिहास में कई शिक्षकों का ज़िक्र मिलता है, जिन्होंने अपने शिष्यों को महान राजा बनाया। जैसे कि चाणक्य , बैरम-खा और द्रोणाचार्य, आदि।
आज भी हर सफल व्यक्तित्व के पीछे देखें, तो हम पाएंगे की उनकी सफलता में कहीं न कहीं उनके कोच या शिक्षकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अभी हाल ही में दिए गए राजीव गाँधी खेल रतन पुरुस्कारों में एक श्रेणी द्रोणाचार्य अवार्ड की भी थी, जिसमे सफल खिलाडियों के कोचों को सम्मानित किया गया था। विराट कोली के कोच और पी वी सिन्दू के कोच पी गोपीचंद को कैसे भूल सकते हैं या फिर सचिन तेंदुलकर के कोच रमाकांत आचरेकर को। अगर ये खिलाड़ी महान हैं, तो उनकी महानता में उनके गुरुओं की महनत भी सम्मिलित है, जिन्होंने उन्हें कठोर परिश्रम और अनुशाषित रहना सिखाया ।
हर बार शिक्षक दिवस पर देश के कुछ चुने हुए शिक्षकों को भी सम्मानित किया जाता है। ये एक अच्छी परम्परा है, क्यूंकि एक अच्छा गुरु ही देश को महान और श्रेष्ट शाषक दे सकता है, पर आज कल गुरु शिष्य परंपरा तो लगभग समाप्त ही हो गई है। न आजकल शिक्षक इतनी गंभीरता से छात्रो को सिखाते हैं और न ही छात्र शिक्षकों को उतना सम्मान दे पाते हैं। आजकल तो यहाँ भी सबकुछ व्यावसायिक हो गया है। पैसे देकर डिग्री मिल जाती है और पैसे देकर आप अच्छे से अच्छे शिक्षक ढूँढ़ सकते है। पर आज हम इस विषय पर बात नहीं करेंगे क्यूंकि सच्चा शिक्षक तो वही है, जो अपने विद्यार्थियों में वो गुण ढूँढ़ निकाले, जो वो खुद में नहीं ढूँढ़ पाते।
हम हर साल 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस तो मनाते है, पर कितने छात्र जानते हैं कि शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है? आजकल के माता पिता का फ़र्ज़ है कि वो अपने बच्चों को सिखाये की उनके लिए शिक्षकों का क्या महत्त्व है और उन्हें गुरुओं का सम्मान करना सिखायें। बच्चों को सिखाये कि जिस प्रकार गलती होने पर माँ उन्हें डांटती है, ठीक इसी प्रकार उनके शिक्षक भी उनको सज़ा देते हैं, पर ये छोटी-छोटी सजाए ही तो उन्हें जीवन में आने वाली परेशानियों से मुकाबला करना सिखाएंगी ।
चलिए अब बात करते हैं, उस महान इंसान की जिसकी याद में शिक्षक दिवस मनाया जाता है; डॉ सर्वपल्ली राधाकृषणन, जो हमारे देश के द्वितीय राष्ट्रपति थे और जिनका जन्म 5 सितम्बर 1888 को हुआ था। जब वो देश के राष्ट्रपति बने तो छात्रो ने उनका जन्मदिन राधाकृषण जयंती के रूप में मनाने का फैसला किया पर उन्होंने कहा कि वो एक शिक्षक है और हमेशा एक शिक्षक की तरह ही याद किये जाना चाहते हैं, इसलिए उनके जन्म दिन को पूरा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है ।
हम आज केवल उन महान शिक्षकों की बात नहीं कर रहे, जिनके शिष्य अपने जीवन में सफल हुए हैं। हर शिक्षक महान होता है, चाहे वो एक गाँव में छोटे से स्कूल में पढ़ाने वाला मामूली सा शिक्षक ही क्यों न हो। हम उन शिक्षकों को नहीं भूल सकते, जो रोज़ लम्बा सफर और ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर चलके किसी छोटे से गाँव के बच्चो को पढ़ने जाते हैं। हम अक्सर ये तो बोल जाते हैं कि आजकल के शिक्षक सिर्फ पैसों के लिए काम करते हैं और अपनी ड्यूटी ठीक तरह से नही करते पर उन की मेहनत और समर्पण को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। आज हम सब उन शिक्षको को नमन करते हैं, जो की अपने पूरे समर्पण से देश के भविष्य निर्माण में लगे हुए हैं।