प्रस्तुत कविता ‘बचपन’ के माध्यम से जीवन के स्वर्णिम काल कहे जाने वाले बचपन की चर्चा की गयी है।उस अवस्था को एक अनसुलझी कहानी की तरह बताते हुए ये कहने का प्रयास किया गया है कि एक बालक को कोई लाज़-शर्म नहीँ होता एवं इस संसार और अपने कर्तव्यों की परवाह नहीं होती।