शहरी दिनचर्या और गाँव की दिनचर्या में अंतर

शहरी दिनचर्या और गाँव की दिनचर्या में अत्यधिक अंतर है शहर और गांव का माहौल एक-दूसरे के विपरीत है आज अधिकांश व्यक्ति गांव से शहर की ओर प्रस्थान करते हैं और शहर की दिनचर्या का हिस्सा बन जाते हैं अनेक लोग नौकरी की तलाश में या अच्छे व्यवसाय की  खोज में शहर जाते हैं, परन्तु शहर और गांव की दिनचर्या में क्या अंतर हैं? कौन सी दिनचर्या व्यक्ति को सूकून देती है? क्या गांव से निकले हुए व्यक्ति का शहरी दिनचर्या को अपनाना या उसमें ढलना आसान है? आज भी अधिकांश लोग हैं जो अपने सपने लेकर शहर जाते हैं पर उस दिनचर्या को अपनाने में समर्थ नहीं होते हैं अनेक व्यक्ति अपने सपनों को पूरा करने के लिए शहर जाते हैं और अनेक लोग ऐसे भी हैं जो नौकरी के लिए शहर जाते हैं। परन्तु सत्य यह है कि जो व्यक्ति जहां रहता है जहां वह अपना अधिकांश समय व्यतीत करता है या जहां उसका बचपन गुजरता है उसे वहीं अच्छा लगता है आज भी अनेक ऐसे लोग हैं जो शहर में रहते हैं वह शारीरिक रूप से तो शहर में ही  रहते हैं पर अनेक बार उनका मन गांव की ओर आकर्षित होता है। शहरी दुनिया गांव की दुनिया से अत्यधिक अलग है वहां के लोगों के रहन – सहन, व्यवहार,  खान-पान में अंतर हैं। जब कोई व्यक्ति गांव से शहर की और अपना रुख लेता है तो उसे कई चीजें सिखना पड़ती है। जब एक व्यक्ति अपने गाँव से निकलता है तो वह सिर्फ अपने सपने साथ लेकर निकलता है परन्तु उन सपनों को पूरा करने की सिख उसे शहर में ही मिलती है। व्यक्ति को इतना परिपक्व होना चाहिए कि वह  शहर और गांव दोनों ही दिनचर्या में ढल सके। आज के समय में अंग्रेजी का सबसे अधिक महत्व हो गया है अर्थात आप शहर में रहते हैं या गांव से शहर की ओर जाते हैं तो अंग्रेजी भाषा सीखना जरूरी है। आज अंग्रेजी हमारे जीवन का हिस्सा है  जो व्यक्ति शहर में रहते हैं जिन्होंने शहर का वातावरण देखा है उनके लिए अंग्रेजी शब्द आसान है परन्तु जब गांव का व्यक्ति शहर में रहता है तो उसे वह सिखना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि आज का युग डिजिटल युग है अर्थात व्यक्ति को सारे काम डिजिटल रूप में पूरे करने होते हैं इसके लिए एक गांव के व्यक्ति के लिए सबसे पहले जरूरी है अंग्रेजी सिखना। अंग्रेजी सीखने से तात्पर्य यह है कि  व्यक्ति स्वयं  को  परिपक्व करे, किसी भी व्यक्ति को  परिस्थितियों के अनुसार ढलान आवश्यक है। जब एक व्यक्ति गांव के माहौल से निकलता है तो उसे शहर के माहौल में ढलने में समय लगता है और अक्सर वह स्वयं को अकेला महसूस करता है।

शहरी दिनचर्या

समय के साथ शहरों की दिनचर्या बदलती जा रही है, शहर में व्यक्ति अलग-अलग अनुभव सिखता है।  शहर की रोनक अक्सर लोगों को आकर्षित करती है क्योंकि व्यक्ति को हर तरह से सुविधाएं मिलती है। यदि दिनचर्या की बात करें तो शहर में हर व्यक्ति मशीन की तरह कार्य करता हैं समय तेजी से गुजर जाता है सुबह उठने से लेकर रात्रि तक व्यक्ति व्यस्त रहता है।  वहां व्यक्ति के पास परिवार के लिए समय निकालना और परिवार के साथ वक्त व्यतीत करने का समय नहीं होता। अधिकांश परिवार और अधिकांश माता-पिता ऐसे होते हैं जो अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते, अपने बच्चों को सांसारिक अनुभव नहीं दे पाते क्योंकि अधिकांश माता-पिता नौकरी करते हैं इस हेतु उन्हें अपने बच्चों के लिए समय निकालना मुश्किल होता है। वहां की दिनचर्या अक्सर व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से भी प्रभावित करती है। शहरों की रोनक इस प्रकार होती है वहां सिर्फ भीड़ होती है उस भीड़ में व्यक्ति अक्सर खुद को अकेला महसूस करता हैं। आज भी शहरों में अधिकांश लोग ऐसे हैं जो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इतने व्यस्त हो गए है कि वे  रिश्ते निभाना भूल गए हैं और अक्सर ऐसी स्थिति आती है जब किसी को मदद की आवश्यकता होती है तो वह अकेला ही रह जाता है क्योंकि जब व्यक्ति रिश्ते नहीं निभाता है तो जल्द ही उन रिश्तों की डोर कमजोर हो जाती है।

शहरों की रोनक

शहरों की रोनक अक्सर व्यक्ति को अपनी और आकर्षित करती है। शहर में हर व्यक्ति की अपनी आजादी है हर व्यक्ति अपने तरीके से जीता है। शहरों में हर व्यक्ति चाहे वह बच्चे हो या बड़े हो उनकी जीवनशैली शहर जैसी ही होती है। यदि बच्चों की बात करें तो शहर में अधिकांश बच्चे खेल अपने घरों में ही खेलते हैं बाहर के खेल से अधिकांश बच्चे परिचित नहीं है क्योंकि उनकी जगह विडियो गेम और मोबाइल फोन ने ले ली है क्योंकि वह धूल मिट्टी से दूर रहना पसंद करते हैं। शहर में अनेक युवक और युवतियां देर रात तक पार्टी करते हैं क्योंकि वहाँ की दिनचर्या ही वहीं है। शहर में हर अधिकांश व्यक्ति ऐसे होते हैं जो मानसिक रूप से परेशान रहते हैं क्योंकि व्यक्ति पूरा दिन व्यस्त रहता है। शहर में सबसे अच्छी चीज यह होती है  व्यक्ति को हर तरह की सुविधाएं मिलती है खाने और घूमने से लेकर खरीदी  तक।  अधिकांश व्यक्ति गांव से शहर आते हैं अनेक सपनों के साथ यहाँ की जीवनशैली को अपनाते हैं यहाँ हर प्रकार के तोड़-तरीके सीखते हैं और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि व्यक्ति शहर में आत्मनिर्भर बनता है।

गांव के आंगन

आज के समय में अधिकांश लोग अपने मन की शांति के लिए और अच्छा महसूस करने के लिए कुछ दिन गांव में व्यतीत करते हैं क्योंकि शहर में हर तरह की सुख सुविधाएं हैं परन्तु सूकून नहीं है। जब व्यक्ति कुछ समय गांव में गुजारता है तो वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वयं को स्वस्थ महसूस करता है वह शहरी दिनचर्या और कार्यो की व्यस्तता से निश्चिन्त रहता है। गांव में कोई भी व्यक्ति खुद को अकेला महसूस नहीं करता क्योंकि वह घर परिवार से बंधा हुआ होता है, गांव में भी व्यक्ति के पास अनेक कार्य होते हैं परन्तु वह कम मे अपना गुजारा करने के लिए तैयार रहते हैं। गांव में हर व्यक्ति अपने परिवार के साथ पर्याप्त समय बिताता है। आज भी गांव में बच्चे आंगन में खेलकर बढ़े होते हैं। आज जब व्यक्ति शहरों की बड़ी – बड़ी इमारतों की भीड़ से गांव आते हैं तो अक्सर गांव के आंगन वहां की रोनक और आंगन के खेल व्यक्ति के मन को अपनी और आकर्षित करते हैं।

Leave a Comment