क्या लॉकडाउन के सामाजिक स्तर पर अन्य फायदे भी हैं?

सम्पूर्ण विश्वभर में कोरोना महामारी को देखते हुए दिनाँक 25/3/2020 को भारत के मननीय प्रधानमंत्री जी ने सम्पूर्ण भारत बर्ष में तालाबंदी कर दी ।ताकि सामाजिक दूरी से लोग एक दूसरे के संपर्क में न आये। जिससे कोरोना महामारी से बचे रहे।

लॉकडाउन के फायदे

1. सामाजिक दूरी बनाये रखना

लॉकडाउन का सबसे पहला उद्देश्य यही है की सामाजिक दूरी को बनाया रखा जाए जिससे स्वस्थ व्यक्ति कोरोना संक्रमित के संपर्क में न आये । जितना लोग सामाजिक दूरी बनाये रखेंगे उतना ही उनके लिए फायदा होगा।

2. बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर निषेध

लॉकडाउन का दूसरा उद्देश्य बाहरी व्यक्तियो के प्रवेश पर रोकना है जिससे हमारे देश के लोग सुरक्षित रहे।क्योंकि बाहरी व्यक्तियो में कोरोना संक्रमण ज्यादा है इसलिए प्रधानमंत्री जी ने यह घोषणा की है की बाहरी व्यक्तियो की जांच की जाए यदि उनके कोरोना के लक्षण पाए जाते है तो उनको होम क्वारंटाइन किया जाए।

3. पर्यावरण स्तर को ऊंचा ले जाना

लॉकडाउन के कारण पर्यावरण को सबसे ज्यादा फायदे हुए है हमारे पर्यावरण में ओज़ोन परत का छिद्र भरने लगा है क्योंकि लॉकडाउन के कारण प्रदूषण में भारी गिरावट आयी है जिससे पर्यावरण शुद्ध हो गया हैं। व वाहनो के न चलने से न ही वायु प्रदूषण हो रहा हैं ओर न ही ध्वनि प्रदूषण।कल कारखानो के बन्द हो जाने से भी हमारा पर्यावरण बिल्कुल स्वच्छ हो गया हैं।

4. दुर्घटनाओ में गिरावट

लॉकडाउन के कारण दुर्घटनाओं में भी भारी गिरावट आयी ह वरना प्रतिदिन न जाने कितने लोग सड़क हादसों में मारे जाते थे परंतु लॉकडाउन की वजह से दुर्घटनाओं में कमी आयी हैं।

5. सामाजिक अपराधों में कमी

लॉकडाउन के कारण सामाजिक अपराधों में भी कमी आयी है। सामाजिक दूरी के चलते सामाजिक अपराध कम हुए हैं
वरना हमारे सम्पूर्ण भारत में न जाने रोज़ कितने अपराध घटित होते थे ।

6. वन्य जीव जन्तु सुरक्षित

लॉकडाउन के कारण कोई भी वन्य जीव जंतुओं का शिकार नही कर रहा है जिस कारण जीव जन्तु भी सुरक्षित हैं।

क्या लॉक डाउन ही आपातकाल है?

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यही कहा जा सकता है की यह आपातकाल है क्योंकि आपातकाल की स्थिति में ही यह सब होता है।

आपातकाल क्या हैं?

संविधान के अनुच्छेद 352 में बताया गया है की आपात की उद्घोषणा, अनुच्छेद 352 में निहित है कि ‘युद्ध’ – ‘बाह्य आक्रमण’ या ‘सशस्त्र विद्रोह’ के कारण संपूर्ण भारत या इसके किसी हिस्से की सुरक्षा खतरें में हो तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है। मूल संविधान में ‘सशस्त्र विद्रोह’ की जगह ‘आंतरिक अशांति’ शब्द का उल्लेख था। 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1972 द्वारा ‘आंतरिक अशांति’ को हटाकर उसके स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द किया गया। जब आपातकाल की घोषणा युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर की जाती है, तब इसे बाह्य आपातकाल के नाम से जाना जाता है। दूसरी ओर, जब इसकी घोषणा सशस्त्र विद्रोह के आधार पर की जाती है तब इसे ‘आंतरिक आपातकाल’ के नाम से जाना जाता है।

राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा संपूर्ण देश अथवा केवल इसके किसी एक भाग पर लागू हो सकती है। यहाँ हम देख सकते हैं की कोई भी बाह्य आक्रमण नही हुआ हैं फिर भी यह आपातकाल लागू हुआ है क्योंकि राष्ट्रीय हित के लिए यह आवश्यक हैं।

मौलिक अधिकारों का निलंबित होना

जब भी देश में आपातकाल की स्थिति आती है तब संबिधान के भाग 3 मे प्रदत्त मौलिक अधिकार स्वत ही निलंबित हो जाते है।

अनुच्छेद 358 आपात के दौरान अनुच्छेद 19 के उपबंधों का निलंबन: “जब युद्ध या बाह्य आक्रमण के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा के संकट में होने की घोषणा करने वाली आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है तब अनुच्छेद 19 की कोई बात भाग 3 में यथा परिभाषित राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की या कोई ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई करने की शक्ति को, जिसे वह राज्य उस भाग में अंतर्विष्ट उपबंधों के अभाव में बनाने या करने के लिए सक्षम होता, निर्र्बंधित नहीं करेगी, किन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई विधि उद्‍घोषणा के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय तुरन्त प्रभावहीन हो जाएगी, जिन्हें विधि के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है:

परन्तु जहाँ आपात की ऐसी उद्‍घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहाँ, यदि और जहाँ तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है तो और वहाँ तक, ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबंध में, जिसमें या जिसके किसी भाग में आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में नहीं है, इस अनुच्छेद के अधीन ऐसी कोई विधि बनाई जा सकेगी या ऐसी कोई कार्यपालिका कार्रवाई की जा सकेगी।

(2) खंड (1) की कोई बात–
(क) किसी ऐसी विधि को लागू नहीं होगी जिसमें इस आशय का उल्लेख अंतर्विष्ट नहीं है कि ऐसी विधि उसके बनाए जाने के समय प्रवृत्त आपात की उद्‍घोषणा के संबंध में है; या (ख) किसी ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई को लागू नहीं होगी जो ऐसा उल्लेख अंतर्विष्ट करने वाली विधि के अधीन न करके अन्यथा की गई है।”

अनुच्छेद 359:  आपात के दोरान भाग 3 द्वारा प्रदत अधिकारों के प्रवर्तन का निलंबन

अनुच्छेद 359 के अंतर्गत मूल अधिकार नहीं अपितु उनका लागू होना निलंबित होता है। (अनुच्छेद 20 व 21 को छोड़कर)

यह निलंबन उन्हीं मूल अधिकारों से संबंधित होता है जो राष्ट्रपति के आदेश में वर्णित होते हैं

अनुच्छेद 359 के अंतर्गत निलंबन आपातकाल की अवधि अथवा आदेश में वर्णित अल्पावधि हेतु लागू हो सकता है और निलंबन का आदेश पूरे देश अथवा किसी भाग पर लागू किया जा सकता है।

हालांकि अनुच्छेद 359 में दिया है की अनुच्छेद 20 व 21 को छोड़कर निलंबित होंगे । परंतु कोरोना महामारी के चलते इस आपातकाल में अनुच्छेद 21 भी निलंबित हो गया है। क्योंकि अनुच्छेद 21 में व्यतिगत स्वतंत्रता की बात कही गयी हैं जिसमे किसी भी व्यक्ति को निरुद्ध नही किया जाएगा परंतु देश के हित के लिए कोरोना से संक्रमीत लोगो को अलग रखा जा रहा है उनको निरूद्ध कर के। इसे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लघंन नही कहा जाएगा क्योंकि ये देश के हित से संबंधित है

निष्कर्ष

लॉकडाउन के कारण हम देख सकते हैं की कोरोना महामारी का बचाव तो हो रहा है साथ ही साथ लॉकडाउन से अन्य फायदे भी हो रहे हैं जो हमारे लिए अत्यधिक लाभदायक है। अतः सम्पूर्ण देश में कोरोना महामारी के बाद भी प्रतिवर्ष 3 सप्ताह के लिए लॉकडाउन लगाया जाना चाहिए जिससे हमारा पर्यावरण भी स्वच्छ रहे साथ में दुर्घटनये भी कम को ओर ओज़ोन परत का छिद्र भी भरने लगे इससे बीमारीया भी कम फैलेंगी ओर लोग स्वस्थ रहेंगे।

सम्पूर्ण भारतबर्ष में लॉक डाउन बना रहना चाहिएक्योंकि बैज्ञानिकों का दावा हैं की अभी कोरोना महामारी की कोई भी वैक्सिन तैयार नही हो पायी हैं वैक्सीन को तैयार करने में लगभग6 माह से लेकर एक साल तक लग सकता हैं इसलिए इसका बचाव ही इसका उपचार हैं उसके लिए जरूरी हैं की लोग सामाजिक दूरी बनाये रखे ताकि अन्य कोरोना से संक्रमित होने से बचे।
क्या सम्पूर्ण भारत में लॉक डाउन के अन्य फ़ायदे भी हैं,?

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