धर्म और कर्म में अंतर धर्म और कर्म का अर्थ? धर्म और कर्म में क्या अंतर हैं क्या तात्पर्य है धर्म और कर्म से हर व्यक्ति अपने जीवन में इन दो पड़ाव से गुजरता है हम धर्म और कर्म को किस तरह परिभाषित करते हैं? धर्म एक जरिया है जो सभी लोगों को एकजुट करता हैं, क्या सिर्फ भगवान की भक्ति करना ही धर्म है?