अपील क्या है, व अपील कब और कौन से न्यायालय मे दायर की जा सकता है?

यदि कभी आपके विरुद्ध कोई निचली अदालत द्वारा कोई निर्णय पारित किया गया हो आप उस निर्णय से सहमत नहीं है, आपको लगता है की आपके साथ नाइंसाफी हुई है, तब आप उसी मामले को ऊपरी अदालत मे लेकर जा सकते है। कभी-कभी न्यायालय मे Over Burden या फिर जाने-अनजाने मे या भूल द्वारा भी न्यायधीश से कोई गलती हो जाती है, जिससे अभियुक्त पक्ष/वादी पक्ष के साथ अन्याय (Injustice) हो जाता है, अपील उन्ही कमियों को दूर करता है, आज इस लेख के माध्यम से आप जान सकते है कि अपील कैसे होगी, कौन करेगा कहा होगी?

दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C) के अध्याय 29 मे धारा 372 से लेकर धारा 394 तक अपील को बताया गया है, कि कब आपको अपील का अधिकार मिल है, कब आप ऊपरी अदालत मे अपील के लिए जा सकते है। जब कोई भी व्यक्ति निचली न्यायालय के निर्णय से संतुष्ट नहीं होता और उसे लगता है की मेरे साथ अन्याय हुआ है तो तो वो ऊपरी अदालत मे उस निर्णय के विरुद्ध जा सकता है, ताकि उसे अन्याय मिले इसी प्रक्रिया को ही अपील कहा जाता है, परंतु ऐसा नहीं है की आप किसी की निर्णय के विरुद्ध अपील कर सकते है यदि उस निर्णय मे प्रावधान हो तब ही अपील की जा सकती है अन्यथा नहीं।

क्या अपील एक जन्मसिद्ध अधिकार है?

नहीं, अपील कोई भी जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है, यह केवल तब ही दिया जाता है जब संहिता मे इसका प्रावधान दिया गया हो, यदि संहिता मे प्रावधान है तब आप बिना किसी संकोच के अपनी अपील दायर कर सकते है।

क्या अपील एक सांविधिक  अधिकार है?

हा, अपील एक  ससांविधिक अधिकार है, यह ऊपरी अदालत को यह अधिकार देती है कि वो मामले को पुन: देखे और यदि अपीलकर्ता के साथ कोई अन्याय हुआ तो उसको ठीक कर  के अपीलकर्ता को न्याय प्रदान करे।

क्या अपील एक मोलिक अधिकार है?

नहीं, अपील मोलिक अधिकार नहीं है यदि आपको अपील का प्रवधान नहीं मिलता तो इसके लिए आप किसी भी न्यायालय मे वाद दायर नहीं कर सकते न ही आप संविधान के अनुच्छेद 32,व 226 के तहत याचिका प्रस्तुत कर सकते है।

भारतीय संविधान (Indian constitution) मे अपील का वर्णन

अनुच्छेद 132 मे बताया गया है यदि कोई भी मामला जो या तो सिविल या दांडिक मामला जो किसी पक्षकार के विपक्ष मे उच्च न्यायालय (High Court) द्वारा कोई भी डिक्री, निर्णय, या अंतिम आदेश पारित किया जाता है परंतु साथ ही मे उच्च न्यायालय द्वारा उस व्यक्ति को प्रमाणपत्र दिया जाता है कि तुम उच्चतम न्यायालय मे अपील कर सकते हो, साथ ही मे उच्च न्यायालय यह अनुच्छेद 134-A के अधीन यह प्रमाणित करता है की इस मामले मे संविधान के निर्वचन के बारे मे विधि का कोई सारवान प्रशन निहित हो।

अनुच्छेद 133 मे बताया गया है कि यदि कोई भी वाद जो सिविल है उच्च न्यायालय द्वारा उस वाद पर कोई भी निर्णय, डिक्री, या अंतिम आदेश दिया गया हो तब उच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 134A के अधीन यह प्रमाणित कर के पक्षकार को दिया जाता है कि:

  1. उस मामले मे कोई भी ऐसा सारवान प्रश्न निहित होगा जो विधि के व्यापक महत्व से संबंधित हो।
  2. जब उच्च न्यायालय ऐसा समझेगा की उस प्रश्न का उच्चतम  न्यायालय (Supreme Court) द्वारा  विनिश्चिय कर लेना आवश्यक है।

अनुच्छेद 134- ऐसे मामले जो दांडिक बिषयों से संबंधित है उनमे उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता

अनुच्छेद 134 के तहत ऐसे मामले जो दांडिक मामले है (Criminal Matters) जिनमे उच्च न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति के विरुद्ध यदि ऐसा आदेश पारित कर दिया हो जिसमे पहले उस व्यक्ति को दोषमुक्ति मिली हो बाद मे उच्च न्यायालय द्वारा उस आदेश को पलटकर मृत्यु दण्डादेश दिया गया हो, साथ ही मे उच्च न्यायालय यह भी प्रमाणित कर दे की यह मामला उच्च न्यायालय मे अपील किए जाने योग्य है, तब वह व्यक्ति उच्चतम न्यायालय मे अपील कर सकता है।

अनुच्छेद 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय की अपील करने के लिए विशेष इजाजत

उच्चतम न्यायालय को यह विशेष अधिकार है कि वो चाहे तो किसी भी न्यायालय के द्वारा पारित डिक्री, आदेश, या दण्डादेश के लिए विशेष इजाजत दे सकता है, जब सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि इस मामले मे व्यक्ति के साथ अन्याय हुआ है तब सुप्रीम कोर्ट ईस अपील की इजाजत प्रदान करती है।

दण्ड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C) मे अपील का प्रावधान

धारा 372- इस धारा मे बताया गया है कि कोई भी अपील तब तक नहीं की जा सकती जब तक की उस अपील का प्रावधान नहीं होगा तो इस प्रकार हम देख सकते है की अपील कोई भी नेसर्गिक अधिकार नहीं है यदि प्रावधान होगा तब ही होगी अन्यथा नहीं।

अकालू अहीर बनाम एन. सी चौधरी 1973 SCC 583

इस प्रमुख वाद मे यह बताया गया की अपील कोई भी नेसर्गिक अधिकार नहीं है यह एक सांविधिक अधिकार है, यदि संहिता मे अपील का प्रावधान नहीं यही तब आप किसी आदेश, डिक्री के खिलाफ ऊपरी अदालत मे अपील नहीं कर सकते।

दुर्गा शंकर मेहता बनाम रघुराराज सिंह AIR 1954 SC 520

इस प्रमुख वाद मे माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया की अपील के अधिकार के लिए किसी भी व्यक्ति को कोई भी अंतर्निहित शक्तिया नहीं दी गई है जब तब किसी भी निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं होगी जब तक की संहिता मे उल्लेख प्रावधान न दिया गया हो।

धारा 373- इस धारा के अनुसार यदि आप कोई भी परिशान्ति कायम रखने या सदाचार के लिए कोई भी प्रतिभूति देते है परंतु आपके उस प्रतिभूति को लेने से इनकार या अस्वीकार कर दिया जाता है तब उस आदेश में अपील दिया जाता है यदि–

  • यदि आपको कभी धारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 117 के अधीन प्रतिभूति देने के आदेश पारित किए परंतु धारा 121 के अधीन प्रतिभूति स्वीकार करने से इनकार कर दिया जाता है, तब आप सेशन कोर्ट मे ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील दायर कर सकते है, परंतु इस धारा की कोई बात उन व्यक्तियों पर लागू नहीं हो सकती यदि जिनके खिलाफ कोई भी ऐसी कार्यवाही सेशन कोर्ट के यहा धारा 122 की उपधारा (2) या फिर उपधारा (4) के उपबंधों के अधीन रखी गई हो।

धारा 122 की उपधारा (2) व उपधारा (4) किस विषय से सम्वन्धित है?

धारा 122 की उपधारा 2 के अनुसार  जब कोई भी मैजिस्ट्रैट किसी भी व्यक्ति को प्रतिभूति देने का आदेश एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए पारित करे परंतु वह व्यक्ति प्रतिभूति नहीं दे पाता तब मैजिस्ट्रैट एक ऐसा निदेश जारी करेगा जिसमे उल्लेखित हो की इस व्यक्ति के विरुद्ध वारंट जारी किए जाए व सेशन न्यायालय के आदेश होने तक इसको कारागार मे निरुद्ध रखा जाए।

धारा 122 की उपधारा 4 के अनुसार यदि कोई भी ऐसी कार्यवाही है जिसमे यदि 2 या 2 से अधिक व्यक्तियों से प्रतिभूति के लिए कहा जाता है और उन्ही मे से एक के बारे में कार्यवाही सेशन न्यायालय को उपधारा (2) के अनुसार निर्देशित कर दी गई हो, तब दूसरे व्यक्ति को भी प्रतिभूति देने के लिए आदेश पारित किया जाएगा उपधारा 2 व उपधारा 3 के अधीन जिसके लिए उसे करावासित किया जा रहा हो यह अवधि उस अवधि से अधिक नहीं होगी जिसके लिए उसे प्रतिभूति देने के आदेश पारित किए गए।

यदि आप पर दोषसिद्ध (Convictions) हो गया हो तब कैसे और कहां करें अपील?

यदि निर्णय आपके विरुद्ध आता है और आपको दोषसिद्धि करार घोषित कर दिया हो तब आप धारा 374 के अधीन अपने अधिवक्ता के माध्यम से अपील कर सकते है, यदि किसी व्यक्ति के किसी मामले का विचारण सेशन न्यायधीश या अपर सेशन न्यायाधीश के समक्ष किया जा रहा है जिसमे उस व्यक्ति को 7 वर्ष या 7 वर्ष से अधिक के कारावास से दंडित करार देकर दोषसिद्द कर दिया हो तब वह व्यक्ति धारा 374 के अधीन उच्च न्यायालय (High court) मे अपील दायर कर सकता है। यदि किसी व्यक्ति को महानगर मैजिस्ट्रैट या सहायक सेशन न्यायधीश या प्रथम वर्ग मैजिस्ट्रैट या द्वितीय वर्ग मैजिस्ट्रैट द्वारा किसी भी मामले के विचारण मे दोषसिद्दी आदेश पारित कर दिया गया हो व धारा 325 के अधीन कोई भी दंडित व धारा 360 के अधीन दंडादेश दिया हो तब वह व्यक्ति सेशन न्यायालय (Session Court) मे अपील दायर कर सकता है।

किन मामलों मे अपील दायर नहीं हो सकती?

धारा 375 के अनुसार जब कोई भी व्यक्ति खुद अपना जुर्म स्वीकार कर ले और उसको उसी के आधार पर दोषी मान कर सजा हो जाती है, तब अपील दायर नहीं की जा सकती।

  1. जब दोषसिद्धि हाई कोर्ट द्वारा दी गई हो तब अपील नहीं की जा सकती।
  2. जब कोई भी मामला ऐसा हो जिसमे सेशन न्यायालय या महानगर मैजिस्ट्रैट, प्रथम व द्वितीय वर्ग   मैजिस्ट्रैट द्वरा दोषी करार दिया हो तब अपील केवल दण्ड के परिणाम और उसकी वैधता के लिए की जा सकती है किसी और चीज के लिए नहीं।

क्या छोटे मामलों मे अपील की जा सकती है?

नहीं, छोटे मामलों मे अपील नहीं की जा सकती धारा 376 के अंतर्गत यदि छोटे मामलों मे सजा भी हो जाए तो अपील नहीं की जा सकती, जैसे:

  1. यदि कोइ मामला ऐसा है, जिसमे हाई कोर्ट द्वारा 6 माह से अधिक के कारावास व एक हजार रुपए के जुर्माने से दंडित किया गया हो तब अपील नहीं की जा सकती।
  2. यदि कोई मामला ऐसा हो, जिसमे सेशन न्यायालय द्वारा 3 माह के कारावास से व 200 रुपए के जुर्माने से दंडित किया गया हो तब अपील नहीं हो सकती।
  3. यदि किसी मामले मे प्रथम वर्ग मैजिस्ट्रैट द्वारा 100 रुपए के जुर्माने से दंडित किया गया हो तब अपील नहीं हो सकती।
  4. यदि किसी सशक्त मैजिस्ट्रैट द्वारा किसी विचारण मे 200 रुपए का जुर्माना लगाया गया हो तब अपील नहीं होगी।

परंतु यदि किसी मामले मे दंडादेश के साथ ही साथ दण्ड भी दिया जाता है, तब उस दंडादेश के खिलाफ अपील दायर की जा सकती है।

दोषमुक्ति (Acquittal) की दशा मे अपील कब दायर की जा सकती है?

यदि आप वादीपक्ष है, आपके मामले मे प्रतिवादी को  दोष मुक्त कर दिया गया है, आप निर्णय से खुश नहीं है, तब आप धारा 378 मे  दोषमुक्ति  के खिलाफ अपील दायर कर सकते है।

कोई भी  जिला मैजिस्ट्रैट लोक  अभियोजक को किसी भी मामले मे जो संज्ञेय या अजमानतीय अपराध का संबंध मे  दोष मुक्त किए गए  आदेश से सत्र न्यायालय मे अपील प्रस्तुत करने के निदेश दे सकता है।

कुछ मामलों मे उच्च न्यायालय मे अपील की जा सकती है, राज्य सरकार लोक अभियोजक को आदेश दे सकती है वो उच्च न्यायालय मे अपील दायर कर सकता है।

दोषमुक्ति के आदेश को पलटकर यदि दोषसिद्धि का आदेश दिया जाए तब अपील?

यदि कोई भी मामला उच्च न्यायालय मे विचारण मे चल रहा था जिसमे उच्च न्यायालय ने दोषमुक्ति के आदेश को पलटकर दोष सिद्धि कर दिया हो तब पीड़ित व्यक्ति धारा 379 मे उच्चतम न्यायालय मे अपील दायर कर सकता है, और वह मामला ऐसा है जिसमे मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक के कारावास का दण्ड दिया गया है।

अपील की अर्जी कैसे प्रस्तुत की जाए?

धारा 382 के तहत जब भी कोई अपील की जाएगी वह अपील अपीलार्थी द्वारा या उसके प्लीडर द्वारा की जाएगी और अपील लिखित मे होनी चाहिए अर्जी के साथ ही साथ उस निर्णय या आदेश की प्रतिलिपि भी संलगन की जाएगी जिसके विरुद्ध वह आदेश दिया गया है।

अगर व्यक्ति जेल मे है तब अपील कैसे होगी?

धारा 383 के तहत यदि कोई भी  व्यक्ति जो जेल मे है परंतु अपील करना चाहता है तो वह व्यक्ति अपनी अपील व उसके साथ संलगन प्रतिलिपि जेल के भारसाधक अधिकारी को दे सकता है जिससे उसकी अपील समुचित न्यायालय मे भेजी जा सके।

अपील का खारिज किया जाना

धारा 384 के तहत यदि कोई भी अपील जो धारा 382 या धारा 383 के तहत दायर की गई हो, तब यदि कोर्ट को अपील की परीक्षा करने के बाद यह प्रतीत हो की यह अपील करने का पर्याप्त आधार नहीं है तब अपील खारिज की जा सकती है, परंतु कोई भी अपील तब तक खारिज नहीं की जा सकती जब तक व्यक्ति को या उसके प्लीडर को सुन नहीं लिया जाता व उचित अवसर दिए बिना अपील खारिज नहीं की जा सकती।

जब तक अपील लंबित है व्यक्ति को जमानत पर छोड़ दिया जाना

धारा 389 के तहत कोई भी व्यक्ति जिस पर दोषसिद्दी करार कर दी गई है, यह व्यक्ति अपील लंबित रहने तक न्यायालय के आदेशानुसार जमानत पर आबंदपत्रों द्वारा छोड़ा जा सकता है, परंतु यदि कोई भी मामला ऐसा हो जिसमे मृत्यु या आजीवन कारावास हो तब न्यायालय व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने से पहले लोक अभियोजक को छोड़े जाने के विरुद्ध के कारण बताने के अवसर प्रदान करेगा।

अपीलों का उपशमन कैसे होगा?

धारा 394 के अनुसार यदि अभियुक्त व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो अंतिम रूप से मामले का उपशमन हो जाएगा परंतु यदि अपीलार्थी की मृत्यु हो जाए तब 30 दिन के अंदर-अंदर अपील जारी रखने के लिए कोई भी निकट रिस्तेदार न्यायालय से इजाजत के लिए आवेदन प्राप्त कर सकता है।

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